KNEWS DESK – राजस्थान के खनन उद्योग में एक बड़ा संकट सामने आया है, जिसमें राज्य के 15 लाख लोगों की नौकरियां खतरे में पड़ गई हैं। राज्य के 20,000 खनन पट्टों को बंद करने का आदेश जारी होने के बाद से यह संकट गहरा गया है। इन खनन पट्टों में काम करने वाले मजदूरों और श्रमिकों के सामने बेरोजगारी का गंभीर संकट खड़ा हो गया है। इस संकट से निपटने के लिए राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जेंट अपील दायर की है, जिसमें खनन पट्टों की पर्यावरणीय मंजूरी की समयसीमा बढ़ाने की मांग की गई है।
खनन उद्योग से जुड़ा मामला
आपको बता दें कि राजस्थान में खनन उद्योग से जुड़े इस संकट का कारण है नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) द्वारा हाल ही में जारी किया गया एक आदेश, जिसमें राज्य के खनन पट्टों के लिए पर्यावरणीय अनुपालन की समीक्षा के लिए 7 नवंबर 2024 तक की समयसीमा निर्धारित की गई थी। इन पट्टों को राज्य पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण (SEIAA) द्वारा पुनः-मूल्यांकन करने की आवश्यकता बताई गई है।
राजस्थान सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता शिवमंगल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में इस मुद्दे को उठाया है। उनका कहना है कि SEIAA के पास इतने बड़े पैमाने पर आवेदनों को संसाधित करने के लिए न तो पर्याप्त संसाधन हैं और न ही पर्याप्त समय।
15 लाख लोगों की नौकरी पर संकट
यह आदेश सीधे तौर पर 15 लाख लोगों की आजीविका को प्रभावित कर रहा है, जो खनन उद्योग से जुड़े हुए हैं। इन खनन पट्टों में काम करने वाले लोग, जिनमें अधिकांश गरीब और कमजोर वर्ग से आते हैं, उनके लिए बेरोजगारी का संकट पैदा हो सकता है। खनन उद्योग का बंद होना राज्य के निर्माण कार्यों, ईंट-पत्थर की कीमतों, और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाएगा।
राजस्थान सरकार ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि इनमें से अधिकांश खनन पट्टे छोटे ऑपरेटरों और स्थानीय समुदायों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो इन पट्टों के जरिए अपनी आजीविका चला रहे हैं। इन खनन पट्टों में से अधिकांश लाइसेंस गरीब और कमजोर वर्गों, भूमिहीन मजदूरों, गरीबी रेखा से नीचे आने वाले परिवारों, और अनुसूचित जाति व जनजाति के सदस्यों को दिए गए हैं।
NGT का आदेश और SEIAA का दबाव
NGT के फैसले के बाद, SEIAA को 23,000 खनन पट्टों में से केवल कुछ ही को पर्यावरणीय अनुपालन के तहत मंजूरी देने में सफलता मिली है। जबकि शेष आवेदनों का अभी तक निपटारा नहीं हो पाया है। SEIAA के पास पर्याप्त स्टाफ और संसाधन न होने के कारण वह इस भारी दबाव को संभालने में असमर्थ है, और इस कारण से राजस्थान सरकार को यह मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाना पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट से 12 महीने का विस्तार की मांग
राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि खनन पट्टों के लिए पर्यावरणीय अनुपालन की समयसीमा को 12 महीने बढ़ाया जाए। सरकार का तर्क है कि यदि ये खदानें बंद हो जाती हैं, तो इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था में व्यापक संकट उत्पन्न होगा, और राज्यभर में निर्माण कार्य भी प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा, ईंट-पत्थर की कीमतों में वृद्धि हो सकती है, और गरीब परिवारों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ सकता है।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
राजस्थान में खनन उद्योग का बहुत बड़ा योगदान है, जो लगभग 15 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करता है। खनन पट्टों के अचानक बंद होने से ना केवल आर्थिक संकट आएगा, बल्कि यह सामाजिक अशांति का कारण भी बन सकता है। इससे अवैध खनन और अपराध में वृद्धि हो सकती है, जो राज्य की सुरक्षा और शांति के लिए खतरा बन सकता है।
राजस्थान सरकार ने यह भी बताया कि इन खनन पट्टों में से कई पट्टे छोटे खनन ऑपरेटरों और स्थानीय समुदायों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो इन पट्टों से अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं। इस संकट का मुख्य प्रभाव उन लोगों पर पड़ेगा, जिनकी आजीविका इन खनन पट्टों से जुड़ी हुई है।
राजस्थान सरकार की याचिका में संतुलित दृष्टिकोण की मांग
राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि खनन पट्टों को बंद करने के संभावित सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर विचार करते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जाए। सरकार का कहना है कि पर्यावरणीय अनुपालन की समयसीमा बढ़ाने से खनन गतिविधियों को नुकसान नहीं होगा और साथ ही श्रमिकों की आजीविका भी सुरक्षित रहेगी।