गैरसैँण से हुंकार, भू कानून-मूल निवास !

उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, पहाड़ प्रदेश उत्तराखंड में एक बार फिर पहाड़ के मुद्दों पर जन आंदोलन शुरू हो गया है। दअरसल राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैँण में रविवार को जन सैलाब देखने को मिला…राज्य की जनता उत्तराखंड में मूल निवास 1950, सख्त भू-कानून और स्थाई राजधानी गैरसैंण की मांग को लेकर सड़को पर उतरी। स्वाभिमान महारैली में महिलाओं और युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। महारैली की सफलता के बाद आयोजकों ने मांगें पूरी नहीं होने पर जेल भरो आंदोलन की भी चेतावनी दी है। वहीं राज्य में इस मुद्दे पर सियासत गरमा गई है। कांग्रेस का आरोप है कि राज्य गठन के दौरान ही भाजपा ने राज्य को स्थाई राजधानी नहीं दी जिसकी वजह से प्रदेश की अबतक कोई स्थाई राजधानी नहीं बन पाई है। वहीं भाजपा ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में क्यों नहीं गैरसैण को स्थाई राजधानी घोषित किया। इसके साथ ही कांग्रेस का कहना है कि भाजपा ने राज्य के सख्त भू कानून को कमजोर किया है. और तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने भू कानून में संशोधन करते हुए जमीन खरीद की बाध्यता को समाप्त कर राज्य की जमीन को बेचने के लिए छोड़ दिया…जिसका खामियाजा उत्तराखंड को भूगतना पड़ रहा है। सवाल ये है कि क्या इतने बड़े जनआंदोलन के बाद राज्य सरकार इन तमाम मांगों को पूरा करेगी

उत्तराखंड में एक बार फिर जन आंदोलन की ज्वाला जल चुकी है। पहाड़ प्रदेश उत्तराखंड में पहाड़ की महिलाएं, पुरूष और युवा एक बार फिर जनक्रांति के लिए तैयार हैं. पहाड़वासी गैरसैँण को स्थाई राजधानी     और  उत्तराखंड में मूल निवास 1950, और सख्त भू-कानून लागू करने की मांग कर रहे हैं। मूल निवास, भू-कानून समन्वय समिति के संयोजक मोहित डिमरी का कहना है कि उत्तराखंड निर्माण आंदोलन के शहीदों के सपनों का राज्य तभी बनेगा, जब स्थायी राजधानी गैरसैंण होगी, मूल निवास 1950 लागू होगा और मजबूत भू-कानून बनेगा। पिछले एक साल से लगातार इन मुद्दों को लेकर सड़कों पर लड़ाई लड़ रहे हैं। अब ये जन आंदोलन का रूप ले चुका है। उनका कहना है कि गैरसैंण के आसपास की जमीनें धड़ाधड़ बिक रही हैं। बाहरी लोग हमारे लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर जमीनें खरीद रहे हैं। यही हाल रहा तो बाहर से आने वाले लोगों की संख्या बढ़ जाएगी। राज्य की डेमोग्राफी चेंज हो रही है। साथ ही मूल निवासी को अधिकार नहीं मिलने पर नौकरियों पर दूसरे लोग कब्जा कर रहे हैं।

आपको बता दें कि उत्तराखंड में पिछले लंबे समय से सश्क्त भू कानून और मूल निवास लागू करने की मांग की जा रही है। सरकार की ओर से पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में भू कानून के लिए एक कमेटी भी गठित की गई थी…इस समिति ने सितंबर 2022 में धामी सरकार को अपनी सिफारिशें सौंप दी थी। लेकिन शासन स्तर पर समिति की सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके अलावा तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में भू कानून में संशोधन करते हुए। जमीन खरीद की बाध्यता को समाप्त कर दिया जाता है। जिसको लेकर विपक्ष लगातार हमलावर है…

कुल मिलाकर राज्य में एक बार फिर पहाड़ की जनता का जन आंदोलन शुरू हो गया है। निश्चित ही इस आक्रोश ने सरकार की टेंशन को बढ़ा दिया है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर कब सरकार उत्तराखंड के मूल मुद्दों पर ध्यान देगी, आखिर कब मूल निवास, सख्त भू कानून और स्थाई राजधानी की मांग पूरी होगी

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