KNEWS DESK- कानपुर नगर निगम के निराले खेल कानपुर वासियों से छिपे नहीं हैं। कभी अपर नगरायुक्त के पीए घूस लेता पकड़ा जाता है, तो कभी ट्रक घोटाला शहरवासियों का ध्यान अपनी ओर खींचता है पर इन दिनों एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें एक ही कहावत सिद्ध होती दिख रही है सैया भये कोतवाल तो अब डर काहे का।
कानपुर नगर निगम में अधिकारियों ने खेल करते हुए अभद्रता के आरोपों के चलते जांच में फंसे चपरासी और घूस लेने के मामले में जेल गए बाबू (लिपिक) को दोबारा बहाल करते हुए स्थायी कर दिया। मामला तब प्रकाश में आया जब स्थायीकरण की सूची विभाग ने जारी की। विभाग द्वारा जारी स्थायीकरण सूची के सामने आने के बाद आरोपों में घिरे कर्मचारियों के नाम लिस्ट में होने से नगर निगम के अधिकारियों के बीच हड़कंप मच गया।
आपको बताते चलें कि अपर नगर आयुक्त (प्रथम) मोहम्मद आवेश खान के कार्यालय में कार्यरत बाबू (लिपिक) राजेश यादव को विजिलेंस इंस्पेक्टर प्रदीप यादव ने 24 अगस्त 2024 को घूस लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया था। पूछताछ में उसने कई अधिकारियों व बाबुओं के नामों का खुलासा किया था। रंगे हाथों घूस लेते हुए पकड़े जाने पर विजिलेंस ने कार्रवाई करते हुए बाबू राजेश को जेल भेज दिया था। नगरायुक्त ने इस मामले में अपर नगर आयुक्त तृतीय अमित कुमार भारतीय को मामले की जांच सौंपते हुए रिपोर्ट तलब की थी राजेश यादव जेल से छूटने के बाद राजेश यादव ने 06 मार्च 2025 को नगर निगम में दोबारा पदभार ग्रहण कर लिया था।
वहीं जोन 6 के जोनल कार्यालय में तैनात चपरासी राजेश शुक्ल ने नशे में धुत्त होकर जोनल अधिकारी से अभद्रता करने के आरोप की जांच चल रही है। जांच अभी पूरी नहीं हुई है और अभद्रता के आरोपी राजेश शुक्ल को स्थायीकरण करते हुए राहत प्रदान की गई है।
स्थायीकरण सूची में 7वें नंबर पर बाबू और 32वें नंबर पर चपरासी का नाम
प्रभारी अधिकारी विद्या सागर यादव ने 12 मार्च को 223 कर्मचारियों के स्थायीकरण की सूची जारी की थी। इस सूची में घूसखोर बाबू राजेश यादव का नाम 7वें नंबर पर दर्ज है तो वहीं अभद्रता का आरोपी चपरासी राजेश शुक्ल का नाम 32वें नंबर पर दर्ज है। इस लिस्ट को देखने के बाद नगर निगम के कर्मचारियों में आपसी कानाफूसी जारी है। कोई दबी जुबान कह रहा है कि साहब को चढ़ावा पहुंच गया है तो कोई अधिकारियों के ऊपर शासन से दवाब की बात कर रहा है।
हालांकि मामला सामने आने के बाद नगरायुक्त सुधीर कुमार स्थायीकरण की सूची से संबंधित कर्मचारियों के नाम हटाने की बात कह रहे हैं।