हरियाली और सुख-समृद्धि के प्रतीक लोकपर्व ‘हरेला’

उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट   , हरियाली और सुख-समृद्धि के प्रतीक लोकपर्व हरेला‘ प्रदेशभर में उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इस अवसर पर पूरे प्रदेश भर में वृक्षारोपण कर प्रकृति को बचाने का संकल्प लिया। वहीं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरेला पर्व के अवसर पर मालदेवता देहरादून में आयोजित शहीदों के नाम पौधारोपण’ कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने वृक्षारोपण किया। वहीं राज्यपाल गुरमीत सिंह ने डोईवाला के विस्थापित क्षेत्र अठूरवाला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर एक पेड़ मां के नाम‘ अभियान के तहत पौधरोपण किया। आपको बता दे कि हरेला उत्तराखंड का लोक पर्व हैजिसमें सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना की जाती है। हरेला प्रकृति से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पर्व है। हरेला पर्व के जश्न के साथ ही सावन की शुरुआत मानी जाती है। चातुर्मास में हर तरफ हरियाली और मन में अथाह उल्लास होता है। इस समय होने वाली वर्षा पर्वतीय क्षेत्रों की फसल के लिए उपयोगी होती हैइसलिए किसान प्रकृति का शुक्रिया अदा करते हैं और इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं। इस रिपोर्ट के जरिए जानते हैं उत्तराखंड में हरेला का पर्व कैसे मनाया गया और इसका क्या महत्व है

 

हरियाली और सुख-समृद्धि के प्रतीक लोकपर्व हरेला‘ प्रदेशभर में उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इस अवसर पर राज्यपाल गुरमीत सिंह ने डोईवाला के विस्थापित क्षेत्र अठूरवाला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर एक पेड़ मां के नाम‘ अभियान के तहत पौधारोपण किया। वहीं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी लोकपर्व हरेला पर देहरादून में पौधरोपण किया। उन्होंने प्रदेशवासियों को बधाई देते हुए कहा कि एक पेड़ मां के नाम‘ अभियान आज देश को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान कर रहा है।

 

आपको बता दें कि हरेला पर्व के अवसर पर अल्मोड़ा में विशेष धार्मिक अनुष्ठान किया गया। हरेला से एक दिन पहले शिव परिवार के मिट्टी से बने प्रतीक को घर-घर में पूजा गया और विशेष पकवान बनाकर भगवान शिव को भोग अर्पित किया गया। बता दें कि सावन लगने से नौ दिन पहले हरेला बोने के लिए डिकोरी का चयन होता है। फिर इस पात्र में मिट्टी डालने के बाद इसमें गेहूंजौधानगहतभट्टउड़दसरसों के बीजों को बो दिया जाता है। नौ दिनों तक इस पात्र में रोजाना पानी छिड़कना होता है फिर दसवें दिन तैयार हुए हरेला को काटा जाता है। घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में ही हर साल हरेला बोया व काटा जाता है। ऐसी मान्यता है कि हरेला जितना अच्छा होगा उतनी ही फसल भी बढ़िया होगी।

 

 

कुल मिलाकर देवभूमि उत्तराखंड में हरेला पर्व की धूमधाम के साथ शुरूआत हो गई है। प्रकृति को समर्पित हरेला पर्व के अवसर पर प्रदेशभर में लाखों पेड़ पौधों का रोपण किया गया। साथ ही सभी ने प्रकृति के संरक्षण का भी संकल्प लिया है।

 

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