KNEWS DESK- डिजिटल एक्सेस (पहुंच) मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि डिजिटल एक्सेस का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के मूल अधिकार का अभिन्न हिस्सा है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को निर्देश दिये हैं कि गांवों की आबादी, वरिष्ठ नागरिकों, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों, भाषाई अल्पसंख्यकों और दिव्यांग लोगों को डिजिटल दुनिया से जोड़ने और डिजिटल डिवाइड को कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाएं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में खासतौर पर दृष्टिहीन और श्रवण बाधित लोगों (जिनके सुनने की क्षमता प्रभावित होती है) के लिए मौजूदा केवाईसी प्रक्रिया को संशोधित करने और ब्रेल, वॉइस-इनेबल्ड सेवाओं जैसे वैकल्पिक फॉर्मेट विकसित करने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश दिए, ताकि सभी के लिए डिजिटल सेवाएं सुलभ बन सकें।
डिजिटल असामनता लोगों को रखती है सिस्टम से बाहर
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आज के दौर में शासन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आर्थिक अवसरों सहित ज़रूरी सेवाओं तक पहुंच मुख्य रूप से डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिये होती है. ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 21 में उल्लिखित जीवन के अधिकार की पुनर्व्याख्या ज़रूरी हो गई है ताकि इसमें डिजिटल यथार्थ को शामिल किया जा सके। डिजिटल असमानता केवल शारीरिक तौर पर अक्षम लोगों को ही नहीं, बल्कि ग्रामीण इलाकों के लोगों, वरिष्ठ नागरिकों, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और भाषाई अल्पसंख्यकों को भी सिस्टम से बाहर रखती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वास्तविक समानता की भावना यही मांग करती है कि डिजिटल बदलाव समावेशी और न्यायसंगत हो।
एसिड अटैक पीड़िताओं की याचिका पर सुनाया फैसला
जस्टिस आर. महादेवन ने जस्टिस जेबी पारदीवाला के साथ मिलकर यह फैसला सुनाया। यह फैसला दो एसिड अटैक पीड़ितों की याचिका पर आया था। इन पीड़ितों का चेहरा बुरी तरह से झुलस गया था और वे 100% अंधे थे। उन्होंने बताया कि डिजिटल KYC प्रक्रिया को पूरा करने में उन्हें दिक्कत हो रही है, क्योंकि वे पलक झपका कर लाइव फोटो नहीं ले पा रहे हैं। इस वजह से वे बैंक खाता नहीं खोल पा रहे हैं और टेलीकॉम कंपनियों से सिम कार्ड नहीं खरीद पा रहे हैं।
दूसरे तरीकों से फोटो लेने के दिए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे ग्राहकों की लाइव फोटो लेने के लिए दूसरे तरीके अपनाएं ताकि डिजिटल KYC समावेशी और सुविधाजनक हो सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि पेपर-आधारित KYC प्रक्रिया को भी जारी रखा जाए।