महाकुंभ में दिगंबर अनि अखाड़ा: चार पट्टियों में बटी परंपरा, उर्ध्व त्रिपुंड और कंठीमाला से पहचान

KNEWS DESK-  दिगंबर अखाड़ा, वैष्णव संप्रदाय के तीन प्रमुख अखाड़ों में से सबसे बड़ा और विशेष पहचान रखने वाला है। यह अखाड़ा अपनी विशिष्ट परंपराओं, वेशभूषा और धार्मिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध है। इसके साधु अपनी अलग पहचान के लिए जाने जाते हैं, जिनमें माथे पर उर्ध्व त्रिपुंड तिलक, गले में गुच्छे जैसी कंठीमाला, लंबी लटों से सजे जटाजूट और सफेद श्वेतवस्त्र शामिल होते हैं। इन साधुओं का प्रतीक श्वेत अंगरख और धोती की वेशभूषा है, जो उनकी धार्मिक पहचान को दर्शाती है।

दिगंबर अखाड़े की परंपरा और कार्य

दिगंबर अखाड़ा वैष्णव संप्रदाय का प्रमुख अंग है और इसे विशेष रूप से उसके धर्म प्रचार कार्यों के लिए जाना जाता है। इसके निर्वाणी और निर्मोही अखाड़े दिगंबर अनि के सहायक के रूप में काम करते हैं, जो धर्म के प्रचार में सक्रिय रूप से शामिल होते हैं। यह अखाड़ा अपने धार्मिक ध्वज, जो पांच रंगों का होता है, और रामभक्त हनुमानजी के चित्र के साथ पहचाना जाता है। इस अखाड़े के साधु न केवल अपने विशिष्ट रूप में पहचान रखते हैं, बल्कि वे पूरे देश में अपने मठों और मंदिरों के माध्यम से धर्म का प्रचार करते हैं।

अखाड़े के सचिव नंदराम दास का कहना है कि इस अखाड़े के देशभर में करीब 450 से अधिक मठ और मंदिर हैं, जो इसके प्रभाव और गतिविधियों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चित्रकूट, अयोध्या, नासिक, वृंदावन, जगन्नाथपुरी और उज्जैन जैसे प्रमुख धार्मिक स्थलों पर इस अखाड़े के श्रीमहंत भी हैं, जो धार्मिक कार्यों का संचालन करते हैं।

इतिहास और स्थापना

दिगंबर अखाड़ा की स्थापना अयोध्या में हुई थी, हालांकि इसकी स्थापना का स्पष्ट काल निश्चित नहीं है। इतिहासकारों का मानना है कि इसे लगभग 500 साल पहले धर्म की रक्षा और प्रचार के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। इस अखाड़े का विशेष नामकरण दिगंबर निंबार्की अखाड़ा और राम दिगंबर के रूप में भी किया जाता है। इसे श्याम दिगंबर और रामानंदी संप्रदाय में भी जाना जाता है।

श्रीमहंत का चुनाव और लोकतांत्रिक प्रक्रिया

दिगंबर अखाड़ा में सर्वोच्च पद श्रीमहंत का है, जिसका चुनाव हर 12 साल में महाकुंभ के दौरान लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत होता है। यह चुनाव अखाड़े की आंतरिक व्यवस्था को बनाए रखने और नेतृत्व की स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत कई उप-अखाड़े भी गठित होते हैं, जिनमें खाकी अखाड़ा, हरिव्यासी अखाड़ा, संतोषी अखाड़ा, निरावलंबी अखाड़ा, और हरिव्यासी निरावलंबी अखाड़ा प्रमुख हैं।

वर्तमान स्थिति और भविष्य

आज के समय में दिगंबर अखाड़े के पास दो लाख से अधिक वैष्णव संत हैं, जो अपनी धार्मिक सेवा और साधना में व्यस्त रहते हैं। अखाड़े का दायरा और प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है, और इसके मठ-मंदिर देशभर में फैले हुए हैं। यह अखाड़ा न केवल धार्मिक क्रियाकलापों में सक्रिय है, बल्कि समाज में धर्म, संस्कृति और आदर्शों के प्रचार-प्रसार में भी अहम भूमिका निभाता है।

दिगंबर अखाड़ा न केवल एक धार्मिक संस्था है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और वैष्णव धर्म के संरक्षण और प्रचार का प्रमुख केंद्र बन चुका है। इसके सिद्धांत और परंपराएं आज भी लाखों अनुयायियों के जीवन का हिस्सा हैं, जो इसे अपने आस्थाओं और विश्वासों का आधार मानते हैं।

ये भी पढ़ें-  पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों में हिमपात और शीतलहर का प्रकोप, पारा गिरने से बढ़ी ठिठुरन

About Post Author

Leave a Reply

Your email address will not be published.