KNEWS DESK- मां-बाप पीछा छुड़ाने के लिए बच्चों को मोबाइल या कोई और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट थमा देते हैं. यह ट्रेंड आजकल काफी आम हो गया है. इससे बच्चा शांत तो हो जाता है पर उसे कई घंटे स्क्रीन के सामने बिताने की लत लग जाती है| इससे बच्चों में ऑटिज्म की बीमारी बढ़ रही है और उनकी सोशल कम्युनिकेशन और बिहेवियर स्किल्स प्रभावित हो रही हैं।
हालांकि, जब से ऑनलाइन क्लासें शुरू हो गई हैं तब से बच्चों को सबसे ज्यादा लत स्मार्टफोन की लगी है। स्मार्टफोन के कारण बच्चों का शारीरिक विकास ठीक से नहीं हो रहा है। एक्सपर्ट के अनुसार, स्क्रीन के आगे ज्यादा समय बिताने के चलते न सिर्फ बच्चों की शारीरिक गतिविधियां सीमित हो गई हैं बल्कि, बच्चों पर इसका मानसिक प्रभाव भी दिखने को मिला है। ऐसे में कई बच्चे तनाव, झुंझलाहट, चिड़चिड़ापन और गुस्से का शिकार होने लगे हैं।
डॉक्टर रजनी फरमानिया ने क्या कहा
दिल्ली के बीएलके मैक्स हॉस्पिटल की डॉक्टर रजनी फरमानिया ने इस बारे में कहा, कि इस कंडीशन को हम वर्चुअल ऑटिज्म बोलते है। जिसका मतलब है कि उन बच्चों को ऑटिज्म होता नहीं है लेकिन उनमें उसके लक्षण आ जाते हैं| एक से तीन साल के बच्चों को इसका ज्यादा खतरा होता है| आज के टाइम पर बच्चे जैसे ही चलना शुरू करते हैं, वो फोन के एक्सपोजर में आ जाते हैं| कई बार मां-बाप सोचते हैं कि हम बच्चों को पढ़ना सिखा रहे हैं. उन्हें ए, बी, सी, डी सिखा रहे हैं लेकिन वो बच्चों को गैजेट्स की लत लगा रहे होते हैं।
रोग विशेषज्ञ डॉ. अरुण शाह ने बताया
मुजफ्फरपुर के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अरुण शाह ने बताया मेरे सामने हर महीने ऑटिज्म के लगभग दो केस आते हैं| ऑटिज्म एक ऐसी स्थिति है जिसकी कोई ज्ञात दवा नहीं है लेकिन पर्सनैलिटी डेवलपमेंट थेरेपी, स्पीच थेरेपी और स्पेशल एजुकेशन थेरेपी काफी हद तक प्रभावी हो सकती है जिससे बच्चे की स्थिति में सुधार हो सकता है. हालांकि, इस प्रक्रिया में काफी समय और प्रयास की आवश्यकता होती है।