KNEWS DESK – इस साल दही हांडी का पर्व 27 अगस्त, मंगलवार को मनाया जा रहा है। यह त्योहार विशेष रूप से कृष्ण भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इसकी परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। दही हांडी की परंपरा श्री कृष्ण के बचपन की लीलाओं को स्मरण करने के लिए मनाई जाती है। इस दिन श्री कृष्ण की वेशभूषा में सजे भक्त, दही और माखन से भरी हांडी को ऊंचाई पर लटकाकर उसे तोड़ते हैं, जो इस त्योहार की विशेषता है।
दही हांडी का महत्व
दही हांडी का पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह पर्व द्वापर युग से ही मनाया जा रहा है, जब श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। उनके बचपन की बाल लीलाओं में माखन की हांडियां तोड़ना एक प्रमुख गतिविधि थी। श्री कृष्ण को माखन बहुत पसंद था, और वे अपने दोस्तों के साथ घर-घर जाकर दही-माखन की हांडियां तोड़कर उसका आनंद लेते थे।
कैसे मनाते हैं दही हांडी
समय के साथ दही हांडी का स्वरूप बदल गया है, लेकिन इसकी मुख्य परंपरा आज भी बरकरार है। दही हांडी के पर्व में एक हांडी या मटकी को दूध, माखन, बादाम, किशमिश, मखाने, इलायची और गुलाब की पंखुड़ियों से भरकर ऊंचाई पर लटका दिया जाता है। फिर, श्री कृष्ण के वेशभूषा में तैयार भक्तों का एक समूह, जो अक्सर 20-30 या इससे अधिक लोग होते हैं, मानव पिरामिड बनाकर इस हांडी को तोड़ने का प्रयास करते हैं। हांडी को तोड़ने के बाद उसमें से दही और माखन निकालकर खा लिया जाता है।
दही हांडी का पर्व मुख्यतः महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन, और गोकुल जैसे स्थानों पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस उत्सव के दौरान कृष्ण भजन गाए जाते हैं और वातावरण भक्तिमय हो जाता है।
दही हांडी का सांस्कृतिक महत्व
दही हांडी न केवल श्री कृष्ण की बचपन की लीलाओं को याद करने का एक तरीका है, बल्कि यह एक सामाजिक उत्सव भी है जो समुदाय की एकता और सहयोग को दर्शाता है। मानव पिरामिड बनाकर हांडी को तोड़ने की परंपरा एकता, ताकत और सामूहिक प्रयास का प्रतीक है।