KNEWS DESK – छठ पूजा का यह महापर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है| इस दिन सभी व्रती महिलाएं सूर्य देव की आराधना और संतान के सुखी जीवन की कामना करती हैं| छठ पूजा कैसे शुरू हुई, इसे लेकर कई ऐतिहासिक मान्यताएं बताई गई हैं|पुराणों में छठ पर्व के पीछे की कहानी राजा प्रियवत को लेकर हैं लेकिन इसके अलावा एक और कथा भी पुराणों में मिलती है|
छठ पर्व को लेकर प्रचलित हैं कई मान्यताएं
बिहार के छठ पर्व को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं| इनमें से एक मान्यता यह भी है कि भगवान श्रीराम की पत्नी सीता मां ने सबसे पहले छठ पूजन किया था जिसके बाद ही महापर्व की शुरुआत हुई| छठ पूजा को बिहार का महापर्व माना जाता है| यह पर्व बिहार के अलावा देश के सभी राज्यों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है|
बिहार के मुंगेर में छठ पूजा का विशेष महत्व है| छठ पूजा से जुड़ी कई अनुश्रुतियां हैं लेकिन धार्मिक मान्यता के अनुसार, सबसे पहले सीता माता ने बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर संपन्न किया था| इसके बाद से महापर्व की शुरुआत हुई| जिसके परिणामस्वरुप माता सीता के चरण चिन्ह आज भी उस स्थान पर मौजूद हैं|
माता सीता ने 6 दिनों तक की थी छठ पूजा
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, ऐतिहासिक नगरी मुंगेर में जहां सीता माता का चरण चिन्ह हैं, वहां रहकर उन्होंने छह दिनों तक छठ पूजा की थी| प्रभु श्रीराम जब चौदह वर्ष के वनवास के बाद आयोध्या लौटे तो रावणवध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि मुनियों के आदेश पर राजयज्ञ सूर्य करने का उन्होंने फैसला लिया| इसके लिए मुदग्ल ऋषियों को आमंत्रित किया गया था लेकिन मुद्गल ऋषि ने भगवान राम और माता सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया| ऋषि के आदेश पर वे दोनों स्वयं आश्रम जा पहुंचे और उन्होंने छठ की पूजा के बारे में ऋषि को बताया|
मुद्गल ऋषि ने दिया था आदेश
मुद्गल ऋषि ने माता सीता को गंगाजल छिड़कर पवित्र किया एवं कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया| यहीं रहकर माता सीता ने 6 दिनों तक भगवान सूर्यदेव की पूजा की थी| ऐसी मान्यता है कि सीता माता ने जहां छठ पूजा संपन्न की, वहां आज भी उनके पदचिन्ह मौजूद हैं| कालान्तर में दियारा क्षेत्र के लोगों ने वहां पर मंदिर का निर्माण करा दिया| यह सीता चरण मंदिर का नाम से प्रसिद्ध है| यह मंदिर हर वर्ष गंगा की वाल में डूबता है और महिनों तक सीता के पद चिन्हों वाला पत्थर गंगा के पानी में डूबा रहता है| इसके बावजूद भी उनके पदचिन्ह धूमिल नहीं पड़े| श्रृद्धालुओं की इस मंदिर के प्रति गहरी आस्था है| दूसरे प्रदेशों से भी छठ पूजा के समय लोग यहां मत्था टेकने आते हैं| कहा जाता है कि यहां आने वाले श्रृद्धालुओं का सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं|
द्रौपदी ने रखा था छठ व्रत
एक और कथा के अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी| इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्य के पुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी| कर्ण सूर्य भगवान के परम भक्त थे| वह घंटों तक पानी मे खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे और सूर्य देव की कृपा से ही वह महान योद्धा बने| आज भी महापर्व छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है|
छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी काफी प्रचलित है| इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना राजपाठ जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठ पर्व रखा था| इस व्रत से उनकी मनोकामना पुरी हुई और पांडवो को अपना राजपाठ वापस मिल गया था| लोक परंपरा के मुताबिक सूर्यदेव और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की अराधना फलदायी मानी गई है|