तमिलनाडु सरकार और केन्द्र सरकार में छिड़ा है परिसीमन विवाद, जानिए क्या होता है परिसीमन

SHIV SHANKAR SAVITA

KNEWS DESK 

केन्द्र सरकार और तमिलनाडु सरकार इस वक्त परिसीमन को लेकर आमने-सामने नजर आ रहे हैं। तमिलनाडु सरकार के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केन्द्र की भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि परिसीमन करके भाजपा तमिलनाडु के लोगों के साथ अन्याय करेगी व केन्द्र की सत्ता से दूर रखेगी। वहीं केन्द्र की भाजपा सरकार ने कहा है कि परिसीमन देश की बढ़ती जनसंख्या के हिसाब से देश को विकसित करने के लिए बहुत जरूरी हो गया है। केन्द्र की भाजपा और तमिलनाडु की स्टालिन सरकार के मध्य छिड़े परिसीमन विवाद को समझते है सरल शब्दों में-

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन (फाइल फोटो)

क्या है परिसीमन?

परिसीमन से तात्पर्य किसी देश में आबादी का प्रतिनिधित्व करने हेतु किसी राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना है। इसमें परिसीमन आयोग को बिना किसी कार्यकारी प्रभाव के काम करना होता है। संविधान के अनुसार, आयोग का निर्णय अंतिम होता है और उसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती, क्योंकि ऐसा करने से चुनाव में हमेशा ही देरी होती रहेगी। परिसीमन आयोग के आदेश लोकसभा या राज्य विधानसभा के समक्ष रखे जाते हैं तो वे आदेशों में कोई संशोधन नहीं कर सकते हैं।

क्यों पड़ी परिसीमन की जरूरत?

जनसंख्या के प्रत्येक वर्ग के नागरिकों को प्रतिनिधित्व का समान अवसर प्रदान करना इसकी मुख्य आवश्यकता है। भौगोलिक क्षेत्रों का उचित विभाजन हो सके ताकि चुनाव में किसी एक राजनीतिक दल को दूसरों की अपेक्षा लाभ न हो। परिसीमन सदैव “एक वोट एक मूल्य” के सिद्धांत का पालन करता है।

परिसीमन आयोग में कौन-कौन होता है शामिल?

परिसीमन आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। परिसीमन आयोग भारत के निर्वाचन आयोग की मदद करता है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश, मुख्य निर्वाचन आयुक्त व संबंधित राज्य के राज्य निर्वाचन आयोग शामिल होता है।

ये है परिसीमन की प्रक्रिया

प्रत्येक जनगणना के बाद भारत की संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद-82 के तहत एक परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है। अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को भी प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।

एक बार अधिनियम लागू होने के बाद केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है। एक बार अधिनियम लागू होने के बाद केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है। हालाँकि पहला परिसीमन  का पायलट अभ्यास राष्ट्रपति द्वारा वर्ष 1950-51 में किया गया था। परिसीमन आयोग अधिनियम 1952 में अधिनियमित किया गया था। 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के आधार पर चार बार वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है। परिसीमन आयोग प्रत्येक जनगणना के बाद संसद द्वारा परिसीमन अधिनियम लागू करने के बाद अनुच्छेद 82 के तहत गठित एक स्वतंत्र निकाय है। वर्ष 1981 और वर्ष 1991 की जनगणना के बाद परिसीमन नहीं किया गया है।

अब तक चार बार हो चुका है परिसीमन आयोग का गठन

अब तक कुल चार बार परिसीमन आयोग गठित किया जा चुका है। वर्ष 1953, वर्ष 1962, वर्ष 1972 और वर्ष 2002 में। केंद्र सरकार ने 1976 में परिसीमन को 2001 की जनगणना के बाद तक के लिए स्थगित कर दिया था ताकि राज्यों के परिवार नियोजन कार्यक्रम लोकसभा में उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को प्रभावित न करें।

परिसीमन को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की क्या है माँग?

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने एक प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि संसद में सीटों की संख्या में वृद्धि की स्थिति में 1971 की जनगणना को इसका आधार बनाया जाना चाहिए।

इसके लिए उचित संविधान संशोधन किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके अलावा 1971 की जनगणना के आंकड़ों को 2026 से अगले 30 वर्षों के लिए लोकसभा सीटों के परिसीमन का आधार बनाया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संसद में इसका आश्वासन देना चाहिए।

परिसीमन को बताया तमिलनाडु के लिए खतरा

स्टालिन के पेश प्रस्ताव के मुताबिक, सरकता ऐसी मांगों को आगे बढ़ाएगी और लोगों के बीच जागरूकता पैदा करेगी। बैठक में जनसंख्या के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया का सर्वसम्मति से विरोध किया गया और कहा गया कि यह संघवाद और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के दक्षिणी राज्यों के अधिकारों के लिए खतरा होगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

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