आमिर खान से लेकर शाहरुख खान तक, कोच बन सितारों ने खिलाड़ियों को दिलाई जीत

KNEWS DESK – खिलाड़ी जब मैदान पर चमकते हैं, तो उनके पीछे सिर्फ उनकी कड़ी मेहनत ही नहीं, बल्कि उनके कोच का मार्गदर्शन और समर्थन भी होता है। कोच वही शख्स होता है जो खिलाड़ियों को उनकी सीमा से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है, उन्हें नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए मेहनत करता है, और उनके सपनों को हकीकत में बदलने का रास्ता दिखाता है। भारतीय सिनेमा में भी कोच की इस महत्वपूर्ण भूमिका को बार-बार दिखाया गया है, जिसमें बड़े सितारों ने कोच या मैनेजर का किरदार निभाया है। ये फिल्में न केवल खिलाड़ियों की संघर्ष गाथा बयां करती हैं, बल्कि कोच के समर्पण और लगन को भी उजागर करती हैं।

महिला हॉकी टीम की अद्वितीय जीत

स्पोर्ट्स पर बनी फिल्मों में सबसे पहले ‘चक दे! इंडिया’ का नाम आता है। यह फिल्म भारतीय महिला हॉकी टीम की कहानी है, जो बिखरी हुई और हतोत्साहित थी, लेकिन कोच कबीर खान की मेहनत और मार्गदर्शन से विश्व कप विजेता बन गई। कबीर खान, जिसका किरदार शाहरुख खान ने निभाया, अपने संवादों के माध्यम से टीम को एकजुट करता है और उन्हें सिर्फ एक मुल्क के लिए खेलने की प्रेरणा देता है—”इंडिया!” फिल्म में कबीर खान की भूमिका असल जीवन के हॉकी गोलकीपर और कोच मीर रंजन नेगी से प्रेरित है, जिन्होंने भारतीय महिला हॉकी टीम को 1998 एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल दिलाया था।

बेटियों के लिए पिता का सपना

‘दंगल’ एक और उदाहरण है, जहां कोच का समर्पण एक खिलाड़ी के जीवन में बदलाव लाता है। यह फिल्म राष्ट्रीय स्तर के पहलवान महावीर सिंह फोगाट और उनकी बेटियों गीता और बबीता की कहानी है। महावीर सिंह (आमिर खान) ने अपनी बेटियों को कुश्ती में प्रशिक्षित किया और उन्हें चैंपियन बनाया। यह फिल्म बताती है कि कैसे एक कोच की प्रगतिशील सोच और दूरदृष्टि न केवल खिलाड़ी की, बल्कि समाज की रूढ़िवादी सोच को भी बदल सकती है।

देश के लिए जीत का जुनून

अक्षय कुमार की फिल्म ‘गोल्ड’ और अजय देवगन की ‘मैदान’ दोनों सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं और देशप्रेम के जज्बे को दर्शाती हैं। ‘गोल्ड’ लंदन ओलंपिक-1948 में स्वतंत्र भारत की हॉकी टीम की पहली जीत की कहानी है, जहां अक्षय कुमार ने टीम मैनेजर तपन दास का किरदार निभाया। वहीं, ‘मैदान’ भारतीय फुटबॉल के कोच सैयद अब्दुल रहीम की कहानी है, जो 1950 से 1963 तक भारतीय फुटबॉल टीम को प्रशिक्षण देते रहे। इन फिल्मों में कोच की भूमिका उन चुनौतियों के खिलाफ लड़ने की होती है, जिनका सामना खिलाड़ी करते हैं—संसाधनों की कमी, खेल प्रशासन की समस्याएं, और समाज की उदासीनता। लेकिन कोच का समर्पण और खिलाड़ियों का जुनून अंततः उन्हें जीत दिलाता है।

इज्जत की लड़ाई

कपिल देव के नेतृत्व में भारतीय क्रिकेट टीम के 1983 विश्व कप की जीत पर आधारित फिल्म ’83’ भी कोच की भूमिका को बड़ी खूबसूरती से दर्शाती है। फिल्म में पी.आर. मान सिंह, जो उस वक्त टीम के मैनेजर थे, की भूमिका को दिखाया गया है। कपिल देव (रणवीर सिंह) और उनकी टीम ने ना सिर्फ अपनी, बल्कि पूरे देश की इज्जत के लिए खेला और वह जीत हासिल की जिसने दुनिया को चौंका दिया।

एक कोच का संघर्ष

फिल्म ‘बुधिया सिंह: बार्न टू रन’ भी कोच की भूमिका पर गहराई से प्रकाश डालती है। मनोज बाजपेयी द्वारा निभाया गया कोच बिरंची दास का किरदार उस जुनून और तपस्या को दिखाता है, जो एक कोच अपने खिलाड़ी की प्रतिभा को तराशने के लिए करता है। यह फिल्म दर्शकों को झकझोर कर रख देती है और कोच के महत्व को समझने के लिए मजबूर करती है।

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