योगी के नेतृत्व की अग्निपरीक्षा हैं यूपी के निकाय चुनाव

उत्कर्ष सिन्हा, एग्जीक्यूटिव एडिटर, केन्यूज़ इंडिया

यूपी के निकाय चुनावों के नतीजे आने में महज दो दिन ही बाकी हैं , मगर इसके राजनीतिक निहितार्थो की चर्चाएं सियासत के गलियारे में लगातार गूँज रही हैं. माना जा रहा है कि स्थानीय सरकार के लिए होने वाले इन चुनावों के नतीजों का असर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा. यूपी के राजनीति में सक्रिय सभी प्रमुख पार्टियाँ इन चुनावों में अपना पूरा दमखम लगा रही हैं, क्योंकि इसके जरिए उन्हें न सिर्फ अपनी जमीनी मौजूदगी का अहसास करना है बल्कि अपने संगठन की मजबूती और खामियों का अंदाजा भी लगाना है.

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए ये चुनाव अलग ही महत्व रखता है क्योंकि स्थानीय निकायों का ये पहला चुनाव है,जो योगी आदित्यनाथ की घोषित अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी लड़ रही है। हालाकि इसके पहले जब 2017 में योगी मुख्यमंत्री बने थे, उसके बाद जल्द ही निकाय चुनाव भी हुए थे, मगर तब ये चुनाव भाजपा के तत्कालीन संगठन की अगुवाई और तब की राजनीतिक लहर के साए में हुए थे. लेकिन तब और अब के बीच काफी वक्त गुजर चुका है और इस गुजरे वक्त में योगी आदित्यनाथ के कद में बहुत बड़ा फर्क भी आ चुका है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि असल में ये चुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए ‘मोदी के साये से निकलने का असली टेस्ट है। इन चुनावो में परिणाम जो भी आएगा, उसका पूरा श्रेय सिर्फ और सिर्फ योगी आदित्यनाथ के हिस्से ही जाएगा। योगी ने निकाय चुनावो में जम कर प्रचार किया और 13 दिन में मुख्यमंत्री योगी ने लगाया संवाद का अर्धशतक लगाया और दोनों चरणों में धुआंधार प्रचार किया. इस दौरान योगी ने सूबे के सभी 18 मंडलों व 17 नगर निगम क्षेत्रों का दौरा किया और गोरखपुर में 4, लखनऊ में 3, वाराणसी व अयोध्या में सीएम की दो-दो रैली व सम्मेलन के साथ-साथ ही चुनाव प्रचार के आखिरी दिन कानपुर, बांदा व चित्रकूट में रैलियां की.

दरअसल 2017 के विधानसभा चुनावों से लेकर यूपी में हुए अब तक के हर चुनाव पर नजर डालें तो योगी आदित्यनाथ की छवि मजबूत जरूर होती गई है लेकिन ये सफलताएं कमोबेश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में साए में ही रही हैं । 2017 में योगी आदित्यनाथ जब बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद मुख्यमंत्री बनाए गए तो उसके फ़ौरन बाद बीजेपी ने पहला चुनाव नगर निकाय का ही लड़ा था । उस चुनाव में बीजेपी ने 16 नगर निगमों में से 14 पर जीत हासिल की थी. यही नहीं 70 नगर पालिका अध्यक्ष और नगर पंचायतों में 100 सीटों पर जीत के साथ बढ़िया प्रदर्शन किया था। भले ही पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद इस परिणाम के बाद योगी को ही अहम माना गया था। कारण ये था कि योगी उस समय कुछ ही महीनो के सीएम थे। और प्रशासनिक तौर पर ‘टेस्टिंग’ के दौर से ही गुजर रहे थे। इसके 5 साल बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए दोबारा यूपी की सत्ता हासिल कर ली। इस जीत ने योगी का कद काफी बढ़ाया । जीत के लिए योगी को श्रेय जरूर मिला लेकिन यहां भी मोदी फैक्टर और मुफ्त अनाज जैसी केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं ने इस सफलता में उनका श्रेय बांट लिया।

यूपी नगर निकाय चुनाव 2023 पर नजर डालें तो बीजेपी की पूरी केंद्रीय टीम ने कर्नाटक चुनाव में ताकत झोंक रखी थी । योगी आदित्यनाथ निकाय चुनाव में अकेले मोर्चे पर डटे हैं। वह अपनी मंत्रियों, विधायकों के साथ राज्य में बीजेपी की टीम की अगुवाई कर रहे हैं । उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के लिहाज से ये नगर निकाय का चुनाव किसी विधानसभा चुनाव से कम नहीं है। प्रदेश में 17 नगर निगम बन चुके हैं, यहां महापौर का चुनाव हो रहा है। 760 शहरी निकायों, 199 नगर परिषदों और 544 नगर पंचायतों के कुल 1,420 नगरसेवकों और परिषद-पंचायतों के करीब 12,500 सदस्यों का चुनाव हो रहा है।

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