KNEWS DESK- पिछले लंबे समय से भारत में रोमियो- जूलियट कानून को लागू करने की बात भले ही अब शुरू हुई हो लेकिन भारत के अलावा कई ऐसे देश हैं जहां पहले से ही यह कानून लागू है। रोमियो-जूलियट कानून देश के नाबालिगों के बीच संबंधों के मामले में सुरक्षा प्रदान करता है। आसान भाषा में समझे तो अगर यौन संबंध बनाए गए दोनों के बीच आपसी सहमति हो और लड़का-लड़की के बीच बहुत ज्यादा उम्र का अंतर ना हो तो ऐसी स्थिति में उसे यौन शोषण नहीं माना जाएगा।
इस कानून को साल 2007 के बाद से कई देशों में अपनाया गया है. ताकि लड़कों को गिरफ्तारी से बचाया जा सके. आसान शब्दों में समझें तो, अगर किसी लड़के की उम्र नाबालिग लड़की से चार साल से ज्यादा नहीं है, और वह आपसी सहमति से संबंध बनाता है तो वो कानून की नजर में दोषी नहीं माना जाएगा।
लगातार काफी सारे ऐसे मामले आते रहते हैं जिसमें टीन एजर लड़की सहमति से बने संबंधों में प्रेग्नेंट हो जाए. इसके बाद उसके परिजन लड़के पर अपनी बच्ची को बहलाने का आरोप लगाते हैं. कोर्ट केस होते हैं और कई बार किशोर जेल चला जाता है। अक्सर इसपर बात होती रही कि अगर लड़का-लड़की दोनों हमउम्र हैं और आपसी रजामंदी से रिश्ता बने तो इसमें एक पक्ष को दुष्कर्म की सजा मिलना गलत है। हाल में सुप्रीम कोर्ट में रोमियो जूलियट कानून से जुड़ी अर्जी दायर हुई, जिसमें किशोरों को इम्युनिटी देने की मांग की गई।
क्या है रोमियो-जूलियट लॉ
रोमियो-जूलियट कानून रजामंदी वाले मामलों में लड़के के लिए प्रोटेक्शन मांगता है. इसमें मांग की गई कि कोर्ट कम से कम 16 से 18 साल के टीन एजर्स के बीच स्वेच्छा से बने संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दे. इससे छोटी उम्र पर सजा का प्रावधान लागू रहे। याचिका में तर्क किया गया कि आजकल के टीन एजर्स के पास इतना दिमाग है कि वे सोच-समझ। कर ही काम करते हैं. ऐसे में एक पक्ष को परेशान करने का कोई मतलब नहीं। रोमियो-जूलियट कानून हालांकि लड़के को कुछ खास स्थितियों में ही इम्युनिटी देता है। अगर दोनों पक्षों की उम्र में ज्यादा फासला हो, जैसे लड़की 13 और लड़का 18 का हो, यानी उम्र में 4 साल से ज्यादा का अंतर हो तो लड़के पर हर हाल में रेप केस बनेगा।
भारत का कानून क्या कहता है?
वर्तमान में जो कानून है उसके हिसाब से 18 साल से कम उम्र के बच्चे की सहमति का कोई महत्व नहीं है. फिलहाल भारत में बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए पॉक्सो यानी द प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफंसेंस एक्ट, 2012 लागू है. इसके अनुसार देश में 18 साल से कम उम्र के बच्चे के बीच अगर आपसी सहमति से भी यौन संबंध बनाए जाते है तो वह सहमति महत्वहीन है. इस एक्ट के तहत कोई भी व्यक्ति कम उम्र के व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाता है, तो ऐसी स्थिति में उसे यौन उत्पीड़न का दोषी माना जाएगा। भारतीय दंड संहिता के धारा 375 के अनुसार भारत में 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंध बनाना दुष्कर्म है, चाहे वह संबंध एक दूसरे की सहमति से ही क्यों न बनाया गया हो।
केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार
अब हर किसी को इस याचिका पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार है. उनकी प्रतिक्रिया बलात्कार से जुड़े कानून की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगी. केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया ही तय करेगा कि सामाजिक परिस्थितियों के मद्देनजर नाबालिगों की क्षमताओं को स्वीकार करते हुए कानून में फेरबदल होगा या नहीं।
रोमियो जूलियट कानून को लागू करने की याचिका पर बेंच ने कहा, “यह कानून का धुंधला हिस्सा है, एक शून्य, इसे दिशा-निर्देशों से भरने की जरूरत है कि कैसे 16 साल से ज्यादा और 18 से कम उम्र वालों के मामले में बलात्कार के कानून लागू होंगे, जिनके बीच सहमति है।