दसौनी ने बताया कि इससे पहले भी जब विधानसभा नियुक्ति मामले में उच्च न्यायालय की सिंगल बेंच से विधानसभा कर्मियों को स्टे मिल गया था तो डबल बेंच में मामला ले जाने बाबत प्रश्न पूछे जाने पर स्पीकर लगातार उसे नकारती रही और दूसरी तरफ बिना किसी को हवा लगे उच्च न्यायालय के डबल बेंच में अपील कर दी ।दसौनी ने कहा कि कांग्रेस भी पहले दिन से इसी बात को कहती आई है जिस बात का उल्लेख महाधिवक्ता बाबुलकर ने रिपोर्ट में की है। बाबूलकर ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है की 2016 से पहले की विधानसभा नियुक्तियों के नियमितीकरण को वैध ठहराया जाए ऐसा कोई भी डॉक्यूमेंट उन्हें नहीं दिया गया है। वही बाबुलकर ने कोटिया कमेटी की रिपोर्ट को कोट करते हुए कहा की कोटिया कमेटी ने भी राज्य गठन से लेकर अब तक की सभी नियुक्तियों को अवैध ठहराया था ऐसे में उनके पास कोई कारण नहीं कि वह 2016 से पहले हुई नियमितीकरण को वैध ठहरा सकें।
विधानसभा भर्तियों पर सवाल विपक्ष का बवाल !
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने विधान सभा सचिवालय में सन 2000 से हुई अवैध नियुक्तियों व भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्यवाही किए जाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। मामले को सुनने के बाद कोर्ट की खंडपीठ ने विधान सभा सचिवालय व सरकार को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने को कहा है। आपको बता दे कि देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि विधानसभा सचिवालय में सन 2000 से अब तक बैकडोर नियुक्तियां करने के साथ साथ भ्रष्टाचार व अनियमितता भी की गई है। इस पर सरकार ने एक जाँच समिति बनाकर 2016 से अब तक की भर्तियों को निरस्त कर दिया। वही विधानसभा के 2016 से पहले के नियुक्त कर्मचारियों को बड़ा झटका लगा है। सूत्रों की माने तो महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने स्पीकर ऋतु खंडूडी को दी अपनी राय में दो टूक स्थिति साफ कर दी हैं सूत्रों की माने तो महाधिवक्ता ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2016 से पहले के कर्मचारियों के नियमितीकरण की वैधता पर वो कोई भी विधिक राय नहीं दे सकते। क्योंकि इन कर्मचारियों के नियमितीकरण की वैधता से जुड़़ा कोई दस्तावेज उन्हें नहीं मिला है। न ही डीके कोटिया की अध्यक्षता वाली समिति में कहीं भी इन कर्मचारियों की नियमितीकरण की वैधता को सही ठहराया गया है। उल्टा कोटिया समिति ने 2000 से लेकर 2022 तक के सभी नियुक्त कर्मचारियों की नियुक्ति को अवैध बताया है। इसी मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई जारी है। ऐसे में वे नियमितीकरण की वैधता पर किसी भी तरह की कोई विधिक राय नहीं दे सकते।
वही विधानसभा से बैकडोर नियुक्तियां से बाहर हुए कर्मचारियों को विधानसभा के गेट पर 38 दिनों से सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन लगातार जारी है मांग सिर्फ यही है नियमों के अनुसार 2000 के बाद वाली विधानसभा में हुई सभी भर्तियों को निरस्त किया जाये वही कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल सरकार पर हल्ला बोले है हालांकि ये मामला अभी हाई कोर्ट में विचाराधीन हे लेकिन सियासत गर्म है
याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य निर्माण के वर्ष 2000 से 2022 तक समस्त नियुक्तियों की जाँच हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में किया जाए और भ्रष्टाचारियों से सरकारी धन के लूट को वसूला जाय। सरकार ने पक्षपातपूर्ण कार्य करते हुए अपने करीबियों की बैकडोर भर्ती नियमों को ताक में रखकर की है। जिससे प्रदेश के लाखों बेरोजगार व शिक्षित युवाओं के साथ धोखा किया है, यह सरकारों द्वारा जघन्य किस्म का भ्रष्टाचार है और वर्तमान सरकार भी दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं कर रही है।
वही विधानसभा नियुक्तियों में बड़ा विवाद उत्पन्न करने को लेकर उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने विधानसभा स्पीकर पर आरोप लगाया है।दसौनी ने कहा की विधानसभा अध्यक्ष ने व्यर्थ ही विधानसभा नियुक्ति मामले में लगातार झूठी बयानबाजी कर प्रदेश की जनता को गुमराह करने का काम किया है। दसौनी ने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब विधिक राय को लेकर विधानसभा स्पीकर ने भ्रमित करने वाला बयान दिया हो और सभी से सच्चाई छुपाई हो। दसौनी ने कहा की विधानसभा अध्यक्ष ने हाल ही में बयान दिया कि उन्होंने सरकार को पत्र लिखकर विधिक राय मांगी है जबकि महाधिवक्ता बाबुलकर उन्हें 9 जनवरी 2023 को ही अपनी राय दे चुके थे ।
वहीं भाजपा का मानना है कि विधानसभा भर्ती को लेकर दोनों संवैधानिक पीठ हैं जिस पर लगातार मामला चल रहा है वही अब इस पूरे मामले पर कांग्रेस राजनीति कर रही है कभी भर्ती घोटाले को लेकर कुछ बोलती है तो कभी कुछ और बोलती है वहीं भाजपा ने कांग्रेस के ऊपर हल्ला बोलते हुए साफ कर दिया है कि यह मामला अभी कोर्ट में है इस पर ज्यादा कुछ कहना सही नहीं होगा
इस मामले को लेकर कोर्ट में केस लंबित हैं। ऐसे में 2016 से पहले के कर्मचारियों को लेकर कोई विधिक राय नहीं दी जा सकती। 17 जनवरी को जब स्पीकर से पूछा गया की वो 2016 से पहले के कर्मचारियों के मामले में क्या कर रही हैं, तो बोला की विधिक राय मांगी गई है। जबकि सूत्रों की माने तो 9 जनवरी को ही महाधिवक्ता अपनी राय दे चुके थे।ऐसे में बडा सवाल ये हैं कि मीडिया क़ो क्यों सही जानकरी नहीं दी जा रही आपको बता दे अब इस पुरे मामले पर नैनीताल हाई कोर्ट में 1 मई को सुनवाई होने जा रही है नैनीताल से सहयोगी कांता पाल के साथ राजेश वर्मा की रिपोर्ट।