KNEWS DESK- सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए न्याय की प्रतीक देवी की प्रतिमा को नया रूप दिया है। भारतीय संविधान लागू होने के 75वें वर्ष में न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी हटा दी गई है, और अब उनके हाथ में तलवार की जगह संविधान है। हालांकि, इस फैसले पर राजनीति गरमा गई है, जिसमें शिवसेना-उद्धव बालासाहेब के नेता संजय राउत ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
संजय राउत की आलोचना
शिवसेना के यूबीटी सांसद संजय राउत ने न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हटाने के निर्णय की आलोचना करते हुए सवाल उठाया। उन्होंने कहा, “न्यायालय का काम संविधान की रक्षा करना और संविधान के तहत न्याय करना है। लेकिन अभी सुप्रीम कोर्ट में क्या हो रहा है? आखिर वे न्याय की देवी के हाथों से तलवार हटाकर उसे संविधान से बदलने का फैसला कर क्या साबित करना चाहते हैं?”
राउत ने आगे कहा, “वे पहले ही संविधान को मार रहे हैं और अब न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी हटाकर भ्रष्टाचार और संविधान की हत्या को खुले तौर पर दिखाना चाहते हैं। यह भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का प्रोपेगैंडा और अभियान है।”
सुप्रीम कोर्ट के बदलाव का उद्देश्य
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पहल पर यह बदलाव हुआ है। उनकी सोच है कि भारत को अपनी अंग्रेजी विरासत से आगे बढ़ने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि कानून कभी अंधा नहीं होता; वह सभी को समान रूप से देखता है।
नई प्रतिमा में न्याय की देवी के एक हाथ में संविधान है, जो यह संदेश देता है कि न्याय संविधान के अनुसार किया जाता है, जबकि दूसरे हाथ में तराजू यह दर्शाता है कि कानून की नजर में सभी समान हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
जैसे ही यह निर्णय सार्वजनिक हुआ, राजनीतिक हलकों में इसकी विभिन्न प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कुछ लोग इसे एक सकारात्मक बदलाव मानते हैं, जबकि अन्य इसे राजनीतिक मंशा से प्रेरित बताते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम ने न केवल न्याय की देवी की छवि को बदलने का कार्य किया है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि भारतीय न्याय प्रणाली अपने मूल सिद्धांतों की ओर लौटने का प्रयास कर रही है। अब देखना होगा कि इस बदलाव का राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में आगे क्या प्रभाव पड़ता है।
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