KNEWS DESK- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को हिंदू समाज को एकजुट करने के महत्व पर जोर दिया और इसे देश का “जिम्मेदार” समाज बताया। बर्धमान के साई ग्राउंड में आयोजित एक कार्यक्रम में भागवत ने कहा कि हिंदू समाज ही वह समाज है, जो देश की एकता और विविधता को समझता है और इसे प्रगति की दिशा में आगे बढ़ाने में सक्षम है।
भागवत ने कार्यक्रम में मौजूद लोगों से कहा, “लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि हम केवल हिंदू समाज पर क्यों ध्यान देते हैं, और मेरा जवाब है कि देश का जिम्मेदार समाज हिंदू समाज है।” उन्होंने यह स्पष्ट किया कि संघ का उद्देश्य केवल एक समुदाय को संगठित करना नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह से हिंदू समाज के भीतर एकजुटता लाना है, क्योंकि यह समाज भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक ताने-बाने का मूल है।
उन्होंने आगे कहा, “अगर मुझे संघ के उद्देश्य को एक शब्द में बताना होता, तो मैं कहता कि संघ हिंदू समाज को संगठित करना चाहता है, क्योंकि यह देश का जिम्मेदार समाज है।” भागवत ने यह भी कहा कि इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संघ ने अपनी गतिविधियों को निरंतर बढ़ाया है और यह हिंदू समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझने के लिए प्रेरित करता है।
विश्व की विविधता को स्वीकारने की आवश्यकता
भागवत ने अपने भाषण में भारतीय समाज की प्रकृति और उसके सांस्कृतिक महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “भारत सिर्फ भूगोल नहीं है; भारत की एक प्रकृति है।” उनका मानना है कि जो लोग इस प्रकृति को नहीं समझ पाए, वे अलग-अलग देशों में चले गए, लेकिन जो लोग भारतीय मूल्यों को समझते हुए यहीं रहे, उन्होंने भारत के असली सार को अपना लिया।
भागवत ने आगे कहा, “यह सार क्या है? यह हिंदू समाज है, जो दुनिया की विविधता को स्वीकार करके फलता-फूलता है। हम कहते हैं ‘विविधता में एकता’, लेकिन हिंदू समाज समझता है कि विविधता ही एकता है।” उनका कहना था कि यह विविधता में एकता का सिद्धांत ही भारत की पहचान है, जो दुनिया भर में हमारे सामाजिक ताने-बाने को एक मजबूत रूप देता है।
संघ का उद्देश्य और भविष्य
आरएसएस प्रमुख ने यह भी कहा कि संघ का उद्देश्य समाज में बुराई और विघटन को खत्म कर एक मजबूत और एकजुट हिंदू समाज का निर्माण करना है। उनका मानना था कि हिंदू समाज के सशक्तिकरण से देश को दुनिया में सम्मान मिलेगा और भारत एक नई दिशा में आगे बढ़ेगा।
भागवत ने अपने विचारों के माध्यम से यह भी स्पष्ट किया कि संघ का कार्य केवल एक विचारधारा फैलाना नहीं है, बल्कि यह समाज में सहयोग और सशक्तिकरण की भावना पैदा करने के लिए काम कर रहा है।
इस कार्यक्रम में बर्धमान के हजारों लोग उपस्थित थे, जो मोहन भागवत के विचारों से प्रेरित हुए और एकजुटता के संदेश को अपने जीवन में लागू करने की प्रतिज्ञा ली। भागवत का यह भाषण संघ के उद्देश्यों को मजबूत करने के साथ-साथ भारत की सांस्कृतिक विरासत को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
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