प्रधानमंत्री मोदी का अभिधम्म दिवस पर बौद्ध भिक्षुओं को संबोधन, कहा- भारत अपनी संस्कृति को नए सिरे से प्रस्तुत कर रहा है

KNEWS DESK-  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभिधम्म दिवस के अवसर पर विज्ञान भवन, दिल्ली में बौद्ध भिक्षुओं को संबोधित किया। इस कार्यक्रम में उन्होंने भगवान बुद्ध के साथ अपने गहरे जुड़ाव और भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करने की महत्वता पर बात की।

भगवान बुद्ध से जुड़ाव

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा, “अभिधम्म दिवस हमें याद दिलाता है कि करुणा और सद्भावना से हम दुनिया को और बेहतर बना सकते हैं।” उन्होंने बताया कि उनका भगवान बुद्ध से जुड़ाव जन्म से ही शुरू हुआ है, जब उनका जन्म गुजरात के वड़नगर में हुआ, जो एक समय बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र था।

मोदी ने बताया कि पिछले 10 वर्षों में उन्हें विभिन्न देशों में बौद्ध धर्म से जुड़े पवित्र आयोजनों में भाग लेने का अवसर मिला। उन्होंने नेपाल में भगवान बुद्ध की जन्मस्थली और मंगोलिया में उनकी प्रतिमा के अनावरण का उल्लेख किया।

पाली भाषा को शास्त्रीय दर्जा

प्रधानमंत्री ने अभिधम्म दिवस के साथ एक ऐतिहासिक उपलब्धि की भी घोषणा की: “इस महीने भारत सरकार ने पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है।” उन्होंने कहा कि यह सम्मान भगवान बुद्ध की महान विरासत का सम्मान है और पाली भाषा के ज्ञान को धम्म को समझने के लिए आवश्यक बताया।

संस्कृति और सभ्यता का पुनरुत्थान

मोदी ने बताया कि 20 अक्तूबर को वे वाराणसी जाएंगे, जहां सारनाथ में विभिन्न विकास कार्यों का लोकार्पण किया जाएगा। उन्होंने कहा, “हम नए निर्माण के साथ-साथ अपने अतीत को भी सुरक्षित कर रहे हैं।” पिछले 10 वर्षों में भारत ने 600 से अधिक प्राचीन धरोहरों और अवशेषों को वापस लाने का काम किया है, जिनमें से कई बौद्ध धर्म से संबंधित हैं।

युवाओं के लिए मार्गदर्शन

प्रधानमंत्री ने युवाओं को विज्ञान और तकनीक में अग्रणी बनाने के साथ-साथ अपनी संस्कृति और संस्कारों पर गर्व करने का भी आग्रह किया। उन्होंने कहा, “बौद्ध धर्म की शिक्षाएं हमारे लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक हैं।”

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में यह विश्वास जताया कि हमारे संत और भिक्षुक इस दिशा में युवाओं का मार्गदर्शन करेंगे, जिससे भारत निरंतर आगे बढ़ेगा। इस कार्यक्रम ने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं के प्रति भारतीय समाज की आस्था को एक बार फिर से उजागर किया और भारत की सांस्कृतिक धरोहर के पुनर्जागरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

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