KNEWS DESK – मलयालम साहित्य के दिग्गज लेखक और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता एमटी वासुदेवन नायर का 91 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनका निधन बुधवार को एक निजी अस्पताल में हुआ। उनके निधन से साहित्य और सिनेमा जगत में शोक की लहर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रधानमंत्री मोदी का शोक संदेश
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एमटी वासुदेवन नायर के निधन पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए कहा, “नायर जी की रचनाओं में मानवीय भावनाओं की गहरी खोज थी। उनकी शानदार रचनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणादायक बनी रहेंगी। उन्होंने हाशिए पर पड़े और खामोश लोगों को अपनी कलम से आवाज दी। वे मलयालम साहित्य और सिनेमा की सबसे सम्मानित शख्सियतों में से एक थे। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं।”
ममूटी ने दी भावनात्मक श्रद्धांजलि
प्रसिद्ध मलयालम अभिनेता ममूटी ने भी अपने दोस्त और महान साहित्यकार एमटी वासुदेवन नायर को भावनात्मक श्रद्धांजलि दी। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “जिस दिन मैं उनसे मिला, उस दिन से हमारा रिश्ता और मजबूत हुआ। हम दोनों का संबंध एक दोस्त और भाई की तरह बढ़ा। उनका साथ सबसे बड़ा सौभाग्य था। उन्होंने मेरे कई किरदारों को पसंद किया, और उनकी सराहना मेरे लिए बहुत मायने रखती है।”
फिल्मों में योगदान
एमटी वासुदेवन नायर ने सिर्फ साहित्य ही नहीं, बल्कि मलयालम सिनेमा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने मलयालम फिल्म मुरप्पेण्णु से अपनी स्टोरी राइटिंग की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने फिल्म निर्माल्यम का निर्देशन किया, जिसे बेस्ट फीचर फिल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने फिल्म बंधम और कडव में भी निर्देशन किया और मलयालम सिनेमा की दुनिया में अपनी पहचान बनाई।
वासुदेवन नायर की प्रमुख रचनाओं में नालुकेट, रंदामूज़म, वाराणसी और स्पिरिट ऑफ डार्कनेस शामिल हैं। इन कृतियों ने उन्हें साहित्यिक दुनिया में एक विशेष स्थान दिलाया। उनकी लेखनी ने न केवल समाज के कमजोर वर्गों की आवाज को उठाया, बल्कि उनकी संवेदनशीलता और गहरी समझ ने पाठकों को प्रभावित किया।
अद्वितीय साहित्यिक योगदान
एमटी वासुदेवन नायर को उनके अद्वितीय साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। 1996 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया, जो भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान है। 2005 में, उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उनका जन्म केरल के पलक्कड़ में हुआ था, और उन्होंने अपनी शिक्षा विज्ञान में प्राप्त की थी, लेकिन साहित्य में गहरी रुचि होने के कारण उन्होंने इस क्षेत्र में अपना करियर बनाया।