KNEWS DESK – स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से अपने संबोधन में देश के सामने एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद मुद्दे पर अपनी सरकार का रुख स्पष्ट कर दिया। उन्होंने यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को ‘सेकुलर सिविल कोड’ के नाम से संबोधित किया और इसे देश की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुसार आवश्यक बताया।
क्या है ‘सेकुलर सिविल कोड’?
अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि जो कानून धर्म के आधार पर भेदभाव करते हैं, उन्हें आधुनिक समाज में कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा, “जो कानून धर्म के नाम पर बांटते हैं, उन्हें दूर किया जाना चाहिए। हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यूसीसी को लेकर चर्चा की है। कई बार आदेश दिए गए क्योंकि देश का एक बहुत बड़ा वर्ग मानता है कि जिस सिविल कोड को लेकर हम जी रहे हैं, वह वास्तव में एक कम्युनल और भेदभाव करने वाला है।”
मोदी सरकार का एजेंडा: समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मुद्दा मोदी सरकार के टॉप एजेंडे में शामिल रहा है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपने चुनावी घोषणापत्र में राम मंदिर, कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और यूसीसी को लागू करने का वादा किया था। इनमें से राम मंदिर और अनुच्छेद 370 के मुद्दों को हल किया जा चुका है, लेकिन यूसीसी का कार्यान्वयन अभी भी बाकी है।
यूसीसी के तहत, विवाह, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और संपत्ति से जुड़े मामलों में एक समान कानून लागू होगा, जो सभी नागरिकों पर बिना किसी धार्मिक भेदभाव के लागू होगा। इसका मतलब होगा कि देश के हर नागरिक को एक समान कानून का पालन करना होगा, चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो।
संविधान में यूसीसी का प्रावधान
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात करता है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून बनाना सरकार का दायित्व है। यह संविधान की प्रस्तावना में दिए गए धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक सिद्धांत का पालन करता है।
यूसीसी के खिलाफ चुनौतियां और विवाद
हालांकि, यूसीसी को लागू करने में कई चुनौतियाँ और विवाद सामने आते हैं। अगस्त 2018 में विधि आयोग ने अपने कंसल्टेशन पेपर में कहा था कि विविधता के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए और इस कानून से क्षेत्रीय अखंडता को खतरा नहीं होना चाहिए।
विरोध करने वालों का कहना है कि सभी धर्मों पर हिंदू कानूनों को थोप दिया जाएगा, जो अस्वीकार्य है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यूसीसी का सबसे ज्यादा विरोध किया है और इसे धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ बताया है। वे इसे समानता के बजाय एक थोपने वाला कदम मानते हैं।
क्या होगा यूसीसी का भविष्य?
विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि यूसीसी पर आम सहमति नहीं बन पाने के कारण पर्सनल लॉ में कुछ सुधार की जरूरत है, ताकि मौलिक अधिकारों का हनन न हो। फिलहाल, यह मुद्दा 22वें विधि आयोग के पास है, जिसने इस पर आम जनता की राय मांगी थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस भाषण ने यूसीसी पर चर्चा को फिर से हवा दे दी है। अब यह देखना बाकी है कि इस मुद्दे पर सरकार क्या कदम उठाती है और देश की जनता इसे कैसे स्वीकार करती है।