एनसीपीसीआर का सुप्रीम कोर्ट में दावा, कहा- मदरसे बच्चों के लिए उपयुक्त शिक्षा का स्थान नहीं

KNEWS DESK-  नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण बयान दिया है, जिसमें मदरसों को बच्चों के लिए उपयुक्त शिक्षा प्राप्त करने के स्थान के रूप में खारिज किया गया है। एनसीपीसीआर का कहना है कि मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा व्यापक और गुणवत्ता वाली नहीं है, जो कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) के प्रावधानों का उल्लंघन करती है।

मदरसों की शिक्षा प्रणाली पर सवाल

एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मदरसों द्वारा बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा केवल दिखावे के लिए एनसीईआरटी की किताबों का उपयोग करती है और यह औपचारिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी को पूरा नहीं करती है। आयोग ने कहा कि मदरसे आरटीई अधिनियम की धारा 19, 21, 22, 23, 24, 25 और 29 के तहत मिलने वाले अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं, और ये शिक्षा के लिए एक असंतोषजनक मॉडल पेश करते हैं।

आरटीई अधिनियम और मदरसों की समस्या

एनसीपीसीआर का बयान स्पष्ट करता है कि मदरसे संवैधानिक जनादेश और आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार परिभाषित स्कूलों के मानकों को पूरा नहीं करते हैं। मदरसों में शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे स्कूलों द्वारा प्रदान की जाने वाली बुनियादी शिक्षा, जैसे कि मिड-डे मील और स्कूल यूनिफॉर्म, से वंचित रहते हैं। एनसीपीसीआर ने यह भी कहा कि मदरसे बच्चों या उनके परिवारों को मदरसा शिक्षा प्राप्त करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट की रोक और नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने 5 अप्रैल को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को रद्द कर दिया गया था। उच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन बताया था। इस आदेश के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा छात्रों को राहत प्रदान की और उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाते हुए केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किए थे। एनसीपीसीआर का यह बयान और सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही मदरसा शिक्षा प्रणाली पर चल रही बहस को और भी तेज कर सकती है।

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