महिला दिवस स्पेशल, भारत में क्रिकेेट एक खेल रूप में नहीं जाना जाता है. बल्किं इसको एक इमोशन या भावना के रूप में खेला और देखा जाता है. जितने दिवानगी भारत में क्रिकेट के लिए देखी जाती है शायद ही कहीं देखने को मिलें. अगर हम कुछ वक्त पीछे देखें तो पुरूष क्रिकेट टीम को भारत में बहुत सम्मान और प्यार मिलता रहा है. लेकिन महिला क्रिकेट टीम के लिए भारतीय फैंस और मैनेजमेंट के लिए इतनी दिवानगी नहीं थी. फिर भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान बनती है मिताली राज. मिताली टीम की कमान संभालते ही सबसे पहले खिलाड़ियों के हक और सम्मान के लिए लड़ती है और अपनी मेहनत, फोकस और लगन की मदद से वो महिला क्रिकेट टीम को सम्मान और हक दिलाने में सफल भी होती है. आज वूमन दिन पर जानते है उस कप्तान की कहानी जिसने महिलाओं के सम्मान के लिए कप्तानी भी छोड़ने के लिए तैयार हो गई थी.
मिताली राज का भारतीय क्रिकेट में क्या योगदान है, इसे समझने के लिए मिताली के 23 साल के करियर में एक नजर डालनी पड़ेगी. इन 23 सालों में उन्होंने भारत की ओर से सारे फॉरमेट मिलाकर 333 मैच खेले और इन मैचों में वर्ल्ड रिकॉर्ड 10,868 रन बनाए. वह भारत की पहली कप्तान थीं, जिन्होंने दो वर्ल्ड कप फ़ाइनल में टीम का नेतृत्व किया. लेकिन ये आंकड़े उनके योगदान की पूरी कहानी नहीं बताते. पुरुषों के दबदबे वाले खेल में मिताली राज की उपलब्धियों ने देश भर की लड़कियों को क्रिकेट खेलने के लिए प्रेरित किया.
39 साल उम्र में मिताली राज ने अपने संन्यास की घोषणा करते हुए सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है, “देश की ओर से ब्लू जर्सी में खेलना सबसे बड़ा सम्मान है और मैं छोटी उम्र से ही इस यात्रा पर थी. यात्रा में उतार चढ़ाव आए. हर खेल प्रतियोगिता से मुझे कुछ अलग सीखने को मिला और मेरे जीवन के सबसे संतुष्टि भरे, चुनौतीपूर्ण और आनंदित करने वाले बीते 23 साल रहे.”
मिताली राज के इतने लंबे करियर की सबसे बड़ी वजह खेल के प्रति उनका अनुशासन रहा. हालांकि दिलचस्प ये है कि कभी आलसी होने की वजह से उनका नाता खेल से जुड़ा था.
मिताली राज के पिता वायुसेना में तैनात थे. उनके पिता दोराई राज को आशंका थी कि बेटी देर तक सोती रहेगी, इसलिए उन्होंने अपने बेटे के साथ उन्हें भी जॉन क्रिकेट अकादमी सिकंदराबाद भेजना शुरू किया था. मिताली राज वहां अपना अधिकांश समय बाउंड्री के बाहर बैठकर होमवर्क करने में बिताती थीं, लेकिन थोड़े समय बाद उन्होंने बल्ले से अभ्यास करना शुरू किया. अकादमी के कोच ज्योति प्रसाद, मिताली की तकनीक से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उसे कोच संपत कुमार के पास भेजा. उस वक्त संपत कुमार हैदराबाद की दो महिला क्रिकेट टीमों के कोच थे. उनकी प्रशंसा ने भी मिताली की खेल में दिलचस्पी बढ़ा दी. भारतीय शास्त्रीय संगीत के अपने पैशन को पीछे छोड़ते हुए मिताली राज ने पिता के चुने खेल में करियर बनाने का फ़ैसला लिया.
क्रिकेट का अभ्यास सुबह चार बजे शुरू होता था और करीब छह घंटे तक चलता था. संपत कुमार मिताली को उनके स्कूल के संकरे गलियारे में ही बल्लेबाज़ी का अभ्यास कराने लगे थे. ऐसा करने की भी एक वजह थी ताकि मिताली हर शॉट को बैट के मिडिल हिस्से से ही खेलें. क्रिकेट मंथली को सितंबर, 2016 में दिए एक इंटरव्यू में मिताली राज ने बताया था, “जब गेंद दीवार से टकरा जाती थी तो सर मुझे छड़ी से पीटते थे.” लेकिन मिताली खेल में रम चुकी थीं, इस वजह से उन्हें घरेलू फंक्शनों में भी भाग लेने का समय नहीं मिलता था, मिताली के दादा-दादी उन्हें लड़कों का खेल खेलने से हतोत्साहित भी किया करते थे. घंटों की मेहनत और एकाग्रता के चलते ही मिताली राज तकनीकी दृष्टिकोण से भारत की सबसे बेहतरीन बल्लेबाज़ साबित हुईं. मिताली की बल्लेबाज़ी की सबसे बड़ी ख़ासियत यही है कि उन्होंने बेहतरीन तकनीक की मदद से हज़ारों रन बनाए. उम्दा तकनीक और टैलेंट की वजह से उन्हें मौक़े भी जल्दी मिले. महज़ 13 साल की उम्र में उनका चयन आंध्र प्रदेश की टीम में हो गया और 16 साल की उम्र में वो भारतीय टीम के लिए चुन ली गईं. 1999 में इंग्लैंड में खेले गए डेब्यू मैच में मिताली राज ने आयरलैंड के ख़िलाफ़ नाबाद 114 रन ठोक दिए.
भारत की ओर से वनडे क्रिकेट में मिताली राज ने 50.68 की औसत से रिकॉर्ड 7,805 रन बनाए. वनडे क्रिकेट में लगातार सात पारियों में अर्धशतक जमाने का महिला क्रिकेट में वर्ल्ड रिकॉर्ड भी उनके नाम है. पहले मिताली भारतीय महिला क्रिकेट टीम की बल्लेबाज़ी का आधार स्तंभ बनीं और 2005 में उन्हें कप्तानी मिली. 2005 में उनकी कप्तानी में टीम पहली बार वर्ल्ड कप के फ़ाइनल तक पहुंची. ये मामूली उपलब्धि नहीं थी क्योंकि उस वक्त भारतीय महिला क्रिकेट बहुत शुरुआती दौर में ही था. भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों को शोहरत भी मिलती थी और कमाई भी थी लेकिन उनकी तुलना में महिला खिलाड़ी उपेक्षित थे. महिला खिलाड़ियों के पास कोई सुविधा नहीं थी, कोचिंग का ढांचा नहीं था और ना ही घरेलू स्तर पर कोई टूर्नामेंट वग़ैरह था. ऐसी स्थिति में रहते हुए उन्हें इंटरनेशल क्रिकेट में खेलना होता था. मिताली राज की अगुवाई में भारतीय महिला क्रिकेटरों ने बेहतर सुविधाओं और बेहतर वेतन की लड़ाई भी जारी रखा.
महिला क्रिकेटरों के सामने किस तरह की सुविधाएं थीं, इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि 23 साल के करियर में उन्होंने महज़ 12 टेस्ट मैच खेले. 2002 में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ टॉन्टन में मिताली ने भारत को जीत दिलाने वाली 214 रनों की पारी खेली थी, यह तब महिला क्रिकेट में सबसे बड़ा स्कोर था. अगले चार सालों में उन्हें पांच टेस्ट खेलने का मौक़ा मिला और अगले आठ साल में कोई टेस्ट मैच नहीं खेल सकीं. एक बार मिताली राज से पूछा गया था कि कौन सा पुरुष क्रिकेटर उनका फेवरिट है? मिताली ने पलटकर पूछा था, “कभी पुरुष क्रिकेटरों से पूछा है कि उनकी फेवरिट महिला क्रिकेटर कौन है?” क़रीब दो दशक तक मिताली राज भारतीय महिला क्रिकेट का चेहरा और आवाज़ बनी रहीं. मौजूदा भारतीय टीम की कई खिलाड़ी ने उनके खेलते देख कर खेलना शुरू किया था. अपनी बल्लेबाज़ी और सोच समझ और तेवर के चलते मिताली उन सबकी आदर्श हैं. मिताली राज के दौर में भारतीय महिला क्रिकेट में भी बदलाव आया. दुनिया की सबसे अमीर बोर्ड यानी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड 2005 के बाद से ही महिला क्रिकेट को अपने बोर्ड के दायरे में लिया है. 2016 तक महिला क्रिकेटरों के साथ बीसीसीआई कोई अनुबंध भी नहीं करता था. लेकिन 2017 में मिताली राज की कप्तानी में टीम दूसरी बार वर्ल्ड कप के फ़ाइनल तक पहुंची और उसके बाद महिला क्रिकेट में भी ग्लैमर बढ़ा.