KNEWS DESK- मणिपुर में पिछले साल मई से शुरू हुई जातीय हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। इस हिंसा के चलते सुरक्षा बलों के हथियार लूटे जा रहे हैं, उनका रास्ता रोका जा रहा है, और अब ड्रोन और बम भी हमलों में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। इस हिंसा की स्थिति को देखते हुए हाल ही में घाटी के पांच जिलों में इंटरनेट सेवाओं पर लगाए गए अस्थायी प्रतिबंध को तीन दिन बाद सशर्त रूप से हटा दिया गया है।
ब्रॉडबैंड सेवाओं पर सशर्त प्रतिबंध हटाया
अधिकारियों ने शुक्रवार को बताया कि राज्य सरकार ने ब्रॉडबैंड सेवाओं (आईएलएल और एफटीटीएच) पर लगे प्रतिबंध को सशर्त रूप से हटा लिया है। आयुक्त (गृह) एन. अशोक कुमार ने कहा कि इस निर्णय के तहत ब्रॉडबैंड कनेक्शन स्टेटिक आईपी के माध्यम से उपलब्ध होगा और उपभोक्ता केवल स्वीकृत कनेक्शन का ही उपयोग कर सकेंगे। इसके साथ ही, वाईफाई या हॉटस्पॉट की अनुमति नहीं होगी और स्थानीय स्तर पर सोशल मीडिया और वीपीएन को ब्लॉक किया जाएगा।
मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध जारी
हालांकि, मोबाइल इंटरनेट डेटा पर प्रतिबंध जारी रहेगा। राज्य सरकार ने इस कदम को सोशल मीडिया के माध्यम से गलत सूचना और अफवाहों के फैलने के जोखिम को देखते हुए उठाया है। मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से आंदोलनकारियों और प्रदर्शनकारियों के संगठित होने की संभावना है, जो जान-माल की हानि और सार्वजनिक तथा निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
पिछले निर्णय और स्थितियां
10 सितंबर को मणिपुर सरकार ने पांच दिनों के लिए राज्य में इंटरनेट और मोबाइल डेटा पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था, जिसे 15 सितंबर दोपहर 3 बजे तक जारी रखना तय किया गया था। मुख्यमंत्री एन बीरेने सिंह ने इस निर्णय की वजह बताते हुए कहा था कि इंटरनेट पर बैन लगाने का उद्देश्य उपद्रवियों के नफरत फैलाने वाले भाषणों और सोशल मीडिया के माध्यम से हिंसा भड़कने से रोकना था। इससे पहले, राज्य की बिगड़ी स्थिति के चलते आरएएफ को बुलाया गया था और कर्फ्यू लगाने का भी निर्णय लिया गया था।
हिंसा का इतिहास
यह हिंसा मुख्यतः इंफाल घाटी में मैतेई और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी समुदायों के बीच शुरू हुई थी। मई 2023 में शुरू हुए इस जातीय संघर्ष ने भयंकर रूप ले लिया, जिसमें 200 से अधिक लोग मारे गए और हजारों लोग बेघर हो गए। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा बार-बार इंटरनेट और मोबाइल डेटा पर प्रतिबंध लगाने के कदम उठाए जा रहे हैं, जिससे हिंसा को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है।