KNEWS DESK- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘2047 तक विकसित भारत’ के लक्ष्य की दिशा में देश तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन इसी विकास के मार्ग में एक गंभीर जनसांख्यिकीय चुनौती उभरकर सामने आ रही है — घटती प्रजनन दर। संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट ने भारत को चेताया है कि अगर यही रुझान जारी रहा तो भारत को भी भविष्य में चीन और जापान जैसे जनसंख्या संकट का सामना करना पड़ सकता है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की हालिया रिपोर्ट “स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन 2025: द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस” के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) 2024 में गिरकर 1.9 हो गई है। यह आंकड़ा देश की रिप्लेसमेंट लेवल — जो कि 2.1 मानी जाती है — से भी नीचे है। इसका अर्थ है कि हर महिला अपने जीवनकाल में इतने बच्चे नहीं पैदा कर रही जिससे देश की मौजूदा आबादी को स्थिर बनाए रखा जा सके। कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate) वह औसत संख्या होती है, जितने बच्चे कोई महिला अपने जीवनकाल में पैदा करती है। अगर यह दर 2.1 से नीचे चली जाती है, तो यह संकेत देता है कि अगली पीढ़ी की संख्या पिछली पीढ़ी से कम होगी, जिससे लंबे समय में आबादी घट सकती है।
वर्तमान में भारत दुनिया का सबसे युवा देश है।
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0-14 वर्ष की उम्र वाले: 24%
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10-19 वर्ष की उम्र वाले: 17%
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10-24 वर्ष की उम्र वाले: 26%
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कामकाजी उम्र (15-64 वर्ष): 68%
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वरिष्ठ नागरिक (65+ वर्ष): 7%
हालांकि यह आंकड़े आज देश के विकास के लिए वरदान हैं, लेकिन अगर प्रजनन दर यूं ही गिरती रही तो आने वाले दशकों में कामकाजी उम्र की आबादी घटेगी और बुजुर्गों की संख्या बढ़ेगी, जिससे सामाजिक और आर्थिक दबाव पैदा हो सकता है।
चीन, जिसने वर्षों तक एक बच्चा नीति अपनाई थी, अब उसकी आबादी में गिरावट दर्ज हो रही है। वहां की TFR गिरकर 1.18 तक पहुंच चुकी है। जापान की स्थिति और भी चिंताजनक है, जहां यह दर 1.15 है। दोनों ही देश अब जनसंख्या बढ़ाने के उपाय तलाश रहे हैं। भारत को इस अनुभव से सीख लेनी चाहिए।
विशेषज्ञों के अनुसार, शहरीकरण, महंगाई, शिक्षा का स्तर बढ़ना, करियर प्राथमिकता, महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और बच्चे पालने की लागत — यह सब घटती TFR के कारण बन रहे हैं। इसके अलावा, कई युवा दंपत्ति अपना प्रजनन लक्ष्य हासिल नहीं कर पा रहे, जो रिपोर्ट में एक “वास्तविक संकट” के रूप में चिन्हित किया गया है।
भारत सरकार के सामने अब एक संतुलित नीति की चुनौती है —
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एक ओर जनसंख्या नियंत्रण पर सतर्क रहना,
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दूसरी ओर प्रजनन दर में जरूरत से ज्यादा गिरावट को रोकना।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि अब नीतियों को सिर्फ जनसंख्या घटाने पर नहीं, बल्कि प्रजनन क्षमता को प्रोत्साहित करने की दिशा में भी सोचना चाहिए। भारत की आबादी 2025 तक 146.39 करोड़ तक पहुंच सकती है, लेकिन इसके बाद जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार धीमी हो सकती है। अनुमान है कि बढ़ते-बढ़ते यह 170 करोड़ पर पहुंचेगी और फिर धीरे-धीरे गिरावट शुरू होगी।
वर्तमान में देश में पुरुषों की औसत आयु 71 वर्ष, और महिलाओं की 74 वर्ष मानी जा रही है, जो यह दर्शाता है कि जीवन प्रत्याशा में सुधार हो रहा है। लेकिन इससे बुजुर्ग आबादी का अनुपात भी बढ़ेगा, जो सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था पर दबाव डाल सकता है।
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