CPM ने मोदी सरकार को फासीवादी मानने से किया इनकार, भड़की क्रांगेस ने लगाए अरोप

KNEWS DESK, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) की मदुरै में आयोजित होने वाली बैठक के लिए एक राजनीतिक प्रस्ताव तैयार किया गया है, जिसने लेफ्ट में घमासान मचा दिया है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार फासीवादी या नियो-फासीवादी नहीं है। प्रस्ताव में यह भी स्पष्ट किया गया कि मोदी सरकार को फासीवादी या नियो-फासीवादी क्यों नहीं कहा गया।

कोलकाता में मंजूरी मिलने के बाद राज्यों को भेजा गया प्रस्ताव

इस राजनीतिक प्रस्ताव के मसौदे को 17 से 19 जनवरी तक कोलकाता में सीपीएम केंद्रीय समिति की बैठक में मंजूरी दी गई थी। इसके बाद इसे संबंधित नोट के रूप में राज्यों की इकाइयों को भेजा गया। अब इस प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस और सीपीआई ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और सीपीएम से इस पर सुधार की मांग की है। सीपीएम ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि मोदी सरकार को फासीवादी बताने से बचने की जल्दबाजी समझ से परे है।

सीपीआई और कांग्रेस की तीखी प्रतिक्रिया

सीपीआई के राज्य सचिव बिनॉय विश्वम ने कहा, “फासीवादी विचारधारा यह सिखाती है कि धर्म और आस्था का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए कैसे किया जा सकता है, और बीजेपी सरकार इन्हें व्यवहार में लागू कर रही है।” वहीं, कांग्रेस के नेता वी.डी. सतीशन ने सीपीएम के आकलन को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी और इसे मोदी सरकार के साथ गठबंधन और संघ के अधीन काम करने के फैसले का हिस्सा बताया।

बीजेपी से गुप्त संबंधों का आरोप

वी.डी. सतीशन ने मलप्पुरम में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि सीपीएम का यह निर्णय कोई अचरज की बात नहीं है, क्योंकि इससे बीजेपी के साथ उसके सालों पुराने गुप्त संबंध उजागर हो गए हैं। उन्होंने कहा, “केरल में सीपीएम ने हमेशा फासीवाद और संघ के साथ समझौता किया है। नया दस्तावेज इसे बनाए रखने और जीवित रहने का एक प्रयास है।”

सीपीएम का बचाव: मोदी सरकार को कभी फासीवादी नहीं माना

सीपीएम केंद्रीय समिति के सदस्य ए के बालन ने तिरुवनंतपुरम में कहा कि सीपीएम ने कभी भी मोदी सरकार को फासीवादी नहीं माना।

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