सभापति धनखड़ का खरगे को संदेश, सदन की मर्यादा रखें, खरगे का जवाब- मुझे मत सिखाइए

KNEWS DESK-  भारत के संविधान को अंगीकार किए जाने के 75 वर्षों की उपलब्धि के मौके पर संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत हो चुकी है। पहले दिन ही विपक्षी सदस्यों ने अपने तेवर जाहिर कर दिए, जिससे सदन में हलचल मच गई। राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ और नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बीच तीखी बहस हुई, जो संविधान और राजनीति के बीच के समन्वय पर एक महत्वपूर्ण संवाद बन गई।

धनखड़ और खरगे के बीच बहस

सत्र के पहले दिन कार्यवाही के दौरान जैसे ही सभापति जगदीप धनखड़ ने बोलना समाप्त किया, विपक्ष के सदस्य चिल्ला पड़े और नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को बोलने की अनुमति देने की मांग करने लगे। इस पर सभापति ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें अभी एक सेकंड भी नहीं हुआ था कि विपक्ष ने शोर मचाना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा, “इससे विपक्षी नेता की गरिमा को नुकसान पहुंचता है। हमारे संविधान को इस साल 75 साल हो रहे हैं, आपको कुछ तो मर्यादा रखनी चाहिए।”

इस पर मल्लिकार्जुन खरगे खड़े हुए और कहा, “उन 75 सालों में मेरा योगदान 54 साल का है, तो आप मुझे सिखाने की कोशिश मत कीजिए।” यह बयान और भी तेज हो गया जब वे अदाणी मुद्दे को उठाने की कोशिश कर रहे थे, जबकि सभापति धनखड़ उन्हें इस पर बोलने से मना कर रहे थे। इसके बाद सदन में अदाणी मुद्दे पर कई आवाजें उठने लगीं, लेकिन धनखड़ ने कहा कि खरगे का योगदान 54 साल का रहा है और उन्हें अपने योगदान का लाभ मिलना चाहिए।

संविधान को राजनीति से दूर रखने की आवश्यकता

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन संविधान की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि इसे राजनीति से दूर रखना चाहिए। उन्होंने कहा, “संविधान हमारी ताकत है, यह हमारा सामाजिक दस्तावेज है। इसके माध्यम से ही हम सामाजिक और आर्थिक बदलाव ला पाए हैं, और समाज के वंचित, गरीब और पिछड़े लोगों को सम्मान दिया है।” बिरला ने बताया कि आज दुनिया भर में लोग भारत के संविधान को पढ़ते हैं और उसकी विचारधारा को समझने की कोशिश करते हैं।

संविधान की मूल भावना को बनाए रखने की आवश्यकता

लोकसभा अध्यक्ष ने यह भी कहा कि किसी भी सरकार या पार्टी को संविधान की मूल भावना से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। उनका यह बयान विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों के जवाब में था, जिसमें कहा जा रहा था कि सरकार संविधान में बदलाव करने की कोशिश कर सकती है। बिरला ने बताया, “संविधान में समय-समय पर बदलाव किए गए हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने इसके मूल सिद्धांतों से छेड़छाड़ नहीं की है। यह बदलाव सामाजिक परिवर्तन और पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए किए गए हैं।”

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