KNEWS DESK- सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि किसी डॉक्टर को चिकित्सा लापरवाही के लिए तभी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जब उसके पास अपेक्षित योग्यता और कौशल की कमी हो या वह उपचार के दौरान उचित विशेषज्ञता का उपयोग करने में असफल हो। यह फैसला जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने सुनाया।
मामला उस समय का है जब एक शिकायतकर्ता ने अपने नाबालिग बेटे की आंख में जन्मजात विकार के उपचार के लिए चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) में डॉक्टर नीरज सूद पर लापरवाही का आरोप लगाया। शिकायतकर्ता का कहना था कि डॉक्टर ने सर्जरी में गड़बड़ी की, जिसके कारण बच्चे की स्थिति बिगड़ गई।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि शिकायतकर्ता ने डॉ. सूद या पीजीआईएमईआर की ओर से लापरवाही साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि सर्जरी के बाद मरीज की स्थिति में गिरावट का अर्थ यह नहीं है कि सर्जरी अनुचित या अनुपयुक्त थी।
अदालत ने यह कहा कि चिकित्सा पेशेवरों से अपेक्षित उचित देखभाल प्रदान की गई हो, तो इसे कार्रवाई योग्य लापरवाही नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी के आदेश को खारिज करते हुए निर्णय दिया कि शिकायतकर्ता डॉक्टर या पीजीआई के खिलाफ किसी भी प्रकार के मुआवजे के हकदार नहीं हैं। इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि चिकित्सा लापरवाही के मामलों में डॉक्टरों की जिम्मेदारी की परिभाषा को और अधिक स्पष्ट किया गया है, और इससे चिकित्सा पेशेवरों को भी सुरक्षा मिली है, जब वे उचित देखभाल प्रदान करते हैं।
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