KNEWS DESK- 17 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले की सुनवाई के दौरान संवेदनशीलता की हद को पार करते हुए ऐसा आदेश सुनाया था जिसकी हर जगह निंदा हो रही थी। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद हो रही निंदा और लोगों के विरोध के चलते सुप्रीम कोर्ट को इस आदेश के मामले में कूदना पड़ा।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आर गवई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि हमें एक जज द्वारा ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करने के लिए खेद है। जस्टिस आर गवई ने आगे कहा कि हमने हाईकोर्ट के आदेश को देखा है। आदेश के कुछ पैराग्राफ 24, 25 और 26 में जज द्वारा संवेदनशीलता की पूर्ण कमी को दर्शाता है। जस्टिस आर गवई ने आगे कहा कि ऐसा नहीं है कि ये फैसला जल्दीबाजी में दिया गया है। इस फैसले की सुनवाई के बाद 4 महीने का समय लेकर फैसला रिजर्व रखा गया था और 4 महीने के बाद फैसला सुनाया गया था।
जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई के दौरान कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज की कुछ टिप्पणियों पर रोक लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल को सुनवाई के दौरान कोर्ट की सहायता करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम केंद्र, उत्तर प्रदेश को नोटिस जारी करते हैं। कोर्ट ने कहा कि हम दो हफ्ते बाद मंगलवार को इस पर सुनवाई करेंगे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर जताया खेद
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पीड़ित के ब्रेस्ट को पकड़ना, और पाजामे के नाड़े को तोड़ने के आरोप के चलते ही आरोपी के खिलाफ रेप की कोशिश का मामला नहीं बन जाता. फैसला देने वाले जज जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने 11 साल की लड़की के साथ हुई इस घटना के तथ्यों को रिकॉर्ड करने के बाद यह कहा था कि इन आरोप के चलते यह महिला की गरिमा पर आघात का मामला तो बनता है. लेकिन इसे रेप का प्रयास नहीं कह सकते।