आज जयंती है उस महान क्रांतिकारी की, जिसने अपनी बहादुरी से अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ा दी थी ,आइये जानें उस अमर शहीद को

KNEWS DESK:”देश हित  पैदा हुए हैं देश पर मर जायेंगे,मरते-मरते देश को ज़िन्दा मगर कर जायेंगे” ये पंक्तियाँ  लेखक की स्वतंत्रता की उत्कृष्ट इच्छा को ही नहीं दर्शाती हैं बल्कि बतातीं हैं स्वतंत्रता की चाह और क्रांतिकारी भावना उनके शरीर के कण- कण में रची – बसी है ।जी  हाँ ,हम बात कर रहे हैं  भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक रामप्रसाद बिस्मिल  की जो कि देशसेवक के साथ ही एक  बेहतरीन कवि ,शायर ,कुशल बहुभाषी अनुवादक ,इतिहासकार और  साथ ही एक कुशल साहित्यकार भी थे । रामप्रसाद बिस्मिल जी का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश  के शाहजहाँपुर जिले के गाँव में पिता मुरलीधर और माता मूलनती के घर में हुआ था ।

 

परिचय

वे सबसे उत्कृष्ट भारतीय स्वतंत्रता  सेनानियों में से एक थे जिहोंनेअपनी अंतिम साँस तक ब्रिटिश  औपनिवेशिक ताकतों  का विरोध किया ।वे दयानंद सरवती (1875)  द्वारा स्थापित आर्य समाज में शामिल हुए । और अंग्रेजों की  ताकतों के खिलाफ लड़ाई में  कविता को अपना हथियार बनाया। 18 वर्ष की उम्र में इन्होंने “मेरा जन्म” कविता में अपनी  देशप्रेम की पीड़ा को व्यक्त किया ।

स्वतंत्रता की लड़ाई में संगठन में योगदान

पंड़ित रामप्रसाद बिस्मिल ने गेंदालाल दीक्षित के साथ मिलकर “मातृदेवी” नाम के एक संगठन  बनााया । दोनों ही क्रांतिकारी वितारों को साझा करते थे और देश के युवायों को ब्रिटिश सरकार से लड़ने के लिए संगठित करते थे।

बिस्मिल , सचिंद्रनाथ,और जादूगोपाल के साथ “हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन” की (HRA) के प्रमुख संस्थापक थे । बाद में इसका नाम भगत सिंह के कहने पर हिन्दुस्तान रिपब्लिक सोशलिस्ट एसोसिएशन(HRSA) रख दिया । 1924 में HRA  का संविधान बिस्मिल ने ही तैयार किया था ।

प्रमुख क्रांतिकारी घटनाएं

वे वर्ष 1918 के ‘मैनपुरी षडयंत्र में शामिल थे जिसमें पुलिस ने बिस्मिल और अन्य युवाओं को  ऐसी किताबें बेचते हुए पाया था, जो ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित थी। उहोंने ‘देशवासियों के नाम’ शीर्षक से एक पैम्फलेट प्रकाशित किया,  जिसमें  उनकी कविता ‘मैनपुरी की प्रतिज्ञा’ भी शामिल थी। अपनी पार्टी के लिये धन इकट्ठा करने हेतु उहोंने सरकारी खजानों को भी लूटा।वह यमनुा नदी में कूदकर गिरफ्तारी से बच निकले । वर्ष 1925 बिस्मिल  और उनके साथी चंदर्शेखर आजाद और अशफाकउला खान ने लखनऊ के पास काकोरी में एक ट्रेन लूटने का फैसला किया।वेअपने प्रयास में सफल रहे लेकिन हमले के एक महीने के भीतर एक दर्जन से अधिक HRA सदस्यों के साथ उन्हें गिरफ्तार  कर लिया गया और काकोरी षड्यंत्र मामले के तहत मुकद्दमा चलाया गया काननूी प्रिक्रिया 18 महीने तक चली। इसमें राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, अशफाक उला खान, राजेंद्र लाहिड़ी तथा रोशन सिंह को मौत की सज़ा सनुाई गई और अन्य   क्रांतिकारियों को उम्र कैद की सज़ा दी गई।

अन्य घटनायें

अहमदाबाद में भारतीय राष्ट्रीय काॅग्रेस  के वर्ष 1921 के अधिवेशन में भाग लिया।
गोरखपुर सेंट्रल जेल में बंद रहने के दौरान बिस्मिल एक राजनीतिक कैदी के रूप में व्यवहार करने की मांग
को लेकर भूख  हड़ताल पर चले गए।
लखनऊ सेंट्रल जेल में बिस्मिल नेअपनी आत्मकथा  लिखी , जिसे हिंदी  साहित्य में बेहतरीन कार्यों  में से एक
माना जाता है।

इस शहीद की कुर्बानी —- 19 दिसंबर, 1927 को गोरखपुर जेल में उन्हें फाँसी दी गई।राप्ती नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया और बाद  इस स्थल का नाम बदलकर ‘राजघाट कर दिया गया ।

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