ब्राज़ील में एक महिला ने हाल ही में 7.3 किलो वज़न और 59 सेंटीमीटर लंबे बच्चे को जन्म दिया है| एंगर्सन सैंटोस नाम के इस बच्चे का जन्म सी-सेक्शन के ज़रिए ब्राज़ील के परंतान्ज़ शहर के पाद्रे कोलंबो अस्पताल में हुआ है| दुनिया के सबसे वज़नी बच्चे का जन्म साल 1955 में इटली में हुआ था और उसका वज़न 10.2 किलो था| आमतौर पर जन्म के समय एक सामान्य नवजात लड़के का वज़न 3.3 किलोग्राम और लड़की का वज़न 3.2 किलोग्राम होता है| इन स्वस्थ और अधिक वज़न वाले बच्चों के जन्म को मैक्रोसोमिया कहा जाता है, यह लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘बड़ा शरीर’|
चार किलोग्राम से अधिक वज़न के किसी भी नवजात बच्चे को मैक्रोसोमिक शिशु माना जाता है चाहे उसकी गर्भकालीन आयु कुछ भी हो| कई कारणों से वज़नी बच्चा पैदा होने का ख़तरा बढ़ जाता है, जिनमें से एक कारण शरीर का वज़न है. मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में अधिक वज़न वाले बच्चे पैदा होने की संभावना ज़्यादा होती है| इसी तरह, गर्भावस्था के दौरान वज़न बहुत ज़्यादा बढ़ जाने से भी मैक्रोसोमिया का ख़तरा बढ़ जाता है. इसी तरह गर्भावस्था के दौरान मधुमेह होना भी ख़तरे का संकेत है| पाद्रे कोलंबो अस्पताल के डॉक्टरों के मुताबिक़, एंगर्सन का वज़न और लंबाई ज़्यादा होने का कारण उनकी मां को मधुमेह की बीमारी होना है| गर्भावस्था के दौरान मां में इंसुलिन प्रतिरोध की क्षमता बढ़ जाना इस स्थिति का कारण बनती है| जिन महिलाओं को गर्भावस्था में मधुमेह नहीं होता, उनमें भी इन्सुलिन रेजिस्टेंस बढ़ जाती है जिससे शरीर में ग्लूकोज़ की मात्रा बढ़ जाती है| ये फ़ीडिंग ट्यूब के माध्यम से भ्रूण तक पहुंचती है| इस वजह से भ्रूण ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ता है|
ऐसी हालत में, वसा को भी फ़ीडिंग ट्यूब में दाख़िल होने में मदद मिलती है और इससे बच्चा अधिक बढ़ता है| महिलाओं में देर से गर्भ ठहरना भी मैक्रोसोमिक शिशुओं को जन्म देने के ख़तरे को बढ़ाता है| 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में मैक्रोसोमिक शिशु होने की संभावना 20 प्रतिशत अधिक होती है| ऐसे में बच्चे के पिता की उम्र भी मायने रखती है| अगर पुरुष की आयु भी 35 वर्ष से अधिक है, तो ऐसे में मैक्रोसोमिक बच्चों के जन्म की संभावना 10 प्रतिशत अधिक होती है| इसी तरह अगर कोई महिला पहले भी बच्चे को जन्म दे चुकी है, तो उसके भविष्य में होने वाले बच्चे में भी मैक्रोसोमिया के ख़तरे बढ़ जाते हैं| इसी तरह सामान्य से अधिक समय में पैदा होने वाले बच्चे में भी मैक्रोसोमिया का ख़तरा बढ़ जाता है | लड़कों में मैक्रोसोमिया की संभावना ज़्यादा होती है| लड़कियों की तुलना में लड़कों के मैक्रोसोमिक पैदा होने की संभावना तीन गुना अधिक होती है | मैक्रोसोमिया वाले शिशुओं को उनके आकार के कारण जन्म की नली से गुज़रने में कठिनाई होने की संभावना अधिक होती है|
उदाहरण के तौर पर, बच्चे के कंधे माँ के कूल्हे की हड्डी के पीछे फँस जाना काफी आम है| इसके लिए मेडिकल में ‘शोल्डर डिस्टोसिया’ शब्द इस्तेमाल होता है| गर्भावस्था के दौरान जब बच्चा इसमें फँस जाता है तो वह साँस नहीं ले पाता है और माँ के गर्भाशय से जुड़ी उसकी भोजन नली सिकुड़ सकती है. यह बच्चे की हँसली को भी फ्रैक्चर कर सकता है या हाथों में ब्रैकियल प्लेक्सस नसों को नुकसान पहुंचा सकता है. गंभीर मामलों में, बच्चे को होने वाला यह नुक़सान स्थायी भी हो सकता है| बच्चों की पैदाइश में शोल्डर डिस्टोसिया की घटना की दर लगभग 0.7% है, लेकिन मैक्रोसोमिक शिशुओं में इन घटनाओं की दर लगभग 25% है | मैक्रोसोमिया से पीड़ित शिशुओं की माताओं में प्रसव के दौरान वजाइना फटने का ख़तरा बढ़ जाता है, जो पोस्ट पार्टम हेमरेज के ख़तरे को बढ़ा देता है| दुनिया भर में प्रसव के दौरान होने वाली मौत की सबसे बड़ी वजह पोस्ट पार्टम हेमरेज है, क्योंकि बच्चा जितना बड़ा होगा, सामान्य प्रसव के दौरान वजाइना फटने का ख़तरा उतना ही अधिक होगा|
नवजात शिशुओं में मैक्रोसोमिया लेबर के दूसरे चरण में लंबे समय तक रहने के ख़तरे को भी बढ़ाता है, जो उस समय होता है जब सर्वेक्स पूरी तरह से घुल जाता है और बच्चे का सिर मां की वजाइना में चला जाता है| मैक्रोसोमिक शिशुओं के आकार के कारण, ये गतिविधि सामान्य से कम हो सकती हैं, जिससे मां को इंफेक्शन, यूरिनरी ऑब्सट्रेक्शन, और हेमेटोमा (आंतरिक रक्तस्राव) का ख़तरा बढ़ जाता है| इस बारे में सीमित आंकड़े हैं जिससे ये ज़ाहिर होता है कि उनमें सात साल की उम्र में अधिक वज़न या मोटापे से ग्रस्त होने और बाद में टाइप 2 मधुमेह होने की अधिक संभावना है| हम भविष्य में और अधिक ‘वज़नी और बड़े बच्चे’ पैदा होते हुए देख सकते हैं, क्योंकि 1970 के दशक के बाद पैदा होने वाले बच्चों का वज़न पहले पैदा होने वाले बच्चों की तुलना में 450 ग्राम बढ़ा है| इसके अलावा मोटापे की बढ़ती दर जोकि मैक्रोसोमिक बच्चों के पैदा होने का एक प्रमुख कारक है, यह संभावना है कि हम ज़्यादा ‘बड़े’ बच्चे पैदा होते देखेंगे|