मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का कांग्रेस पर हमला, वक्फ कानून और शिक्षा नीति पर उठाए आरोप

KNEWS DESK-  मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कांग्रेस पार्टी पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगाते हुए एक बार फिर तीखा हमला किया है। सोमवार को उन्होंने कहा कि कांग्रेस के शासनकाल में बने वक्फ कानून ने देश की संघीय व्यवस्था और न्यायपालिका का मजाक उड़ाया था। सीएम यादव ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि इस कानून के तहत वक्फ बोर्ड के फैसलों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता कमजोर हुई।

सीएम यादव ने कहा, “कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार के बनाए वक्फ कानून ने देश की संघीय व्यवस्था और न्यायपालिका का अपमान किया। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार ने इस कानून को न्यायालय के दायरे में लाकर न्यायपालिका को मजबूत किया है।” उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस केवल मुस्लिम तुष्टिकरण के आधार पर झूठ बोल रही है, जिससे देश और मुस्लिम समुदाय दोनों को नुकसान पहुंच रहा है।

कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी सरकार की शिक्षा नीति की आलोचना करते हुए आरोप लगाया था कि सरकार का मुख्य एजेंडा सत्ता का केंद्रीकरण, शिक्षा का व्यावसायीकरण और पाठ्यपुस्तकों का सांप्रदायिकरण है। इस पर मोहन यादव ने पलटवार करते हुए कहा, “बेहतर होता अगर सोनिया गांधी देश के शिक्षाविदों से बात करने के बाद 2020 की नई शिक्षा नीति पर कुछ कहतीं।” उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने किसी नादान व्यक्ति से लेख लिखवाकर विद्वानों का मखौल उड़ाया है और उन्हें माफी मांगनी चाहिए।

सीएम यादव ने कांग्रेस सरकारों पर आरोप लगाते हुए कहा कि आजादी के बाद से ही शिक्षा को कांग्रेस ने मजाक बना दिया था। उन्होंने कहा, “मैकाले की ब्रिटानी कालीन शिक्षा नीति का केवल रैपर बदला गया था।” मोहन यादव ने दावा किया कि कांग्रेस के राज में पेश शिक्षा नीतियों के तहत भारतीय महापुरुषों जैसे विक्रमादित्य, महाराणा प्रताप और शिवाजी के योगदान को कम करके दिखाया गया, जबकि विदेशी आक्रांताओं को महान बताया गया।

यह बयान मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक माहौल को और गरमा सकता है। सीएम मोहन यादव ने कांग्रेस पर तुष्टिकरण राजनीति के आरोप लगाकर बीजेपी के सशक्त नेतृत्व की छवि को मजबूत करने की कोशिश की है। अब देखना यह है कि कांग्रेस इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है और क्या यह विवाद आगामी चुनावों के दौरान मतदाताओं के फैसले को प्रभावित करेगा।

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