KNEWS DESK- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में राज्य लोक सेवा आयोगों के अध्यक्षों के 25वें राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन के मौके पर परीक्षाओं और साक्षात्कारों के संचालन में पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि न केवल ये प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए, बल्कि यह स्पष्ट रूप से दिखनी भी चाहिए ताकि जनता में विश्वास बना रहे।
धनखड़ ने सख्त शब्दों में कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद भर्ती और सेवा विस्तार देने की प्रवृत्ति को अब समाप्त करने की आवश्यकता है। उनका मानना है कि यह प्रवृत्ति उन प्रतिभाशाली लोगों के लिए अन्यायपूर्ण है, जो अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने इसे ‘अपरिहार्यता’ के मिथक के रूप में बताया और कहा कि देश में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि कोई भी व्यक्ति अपरिहार्य नहीं है और लोक सेवा आयोगों को इस दिशा में अपनी भूमिका में मजबूती से खड़ा रहना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि लोक सेवा आयोगों में नियुक्तियां केवल क्षमता और योग्यता के आधार पर की जानी चाहिए, न कि संरक्षण या पक्षपाती दृष्टिकोण से। उन्होंने कहा, “हमें अपनी अंतरात्मा के सामने खुद को जवाबदेह ठहराना चाहिए। हम लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को किसी विशेष विचारधारा या व्यक्ति से जुड़ा नहीं रख सकते, क्योंकि यह संविधान के ढांचे के खिलाफ होगा।”
धनखड़ का यह बयान सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र में निष्पक्षता और पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि लोक सेवा आयोगों का उद्देश्य केवल योग्य और सक्षम व्यक्तियों को सेवा में नियुक्त करना होना चाहिए, ताकि सार्वजनिक प्रशासन में गुणवत्ता और दक्षता बनी रहे।
उपराष्ट्रपति का यह संबोधन सरकारी सेवा में सुधार की दिशा में एक स्पष्ट संकेत है कि सभी नियुक्तियां और फैसले पूरी पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ किए जाने चाहिए। उनकी यह टिप्पणी विशेष रूप से उन मामलों पर प्रकाश डालती है, जहां सेवानिवृत्ति के बाद सेवा विस्तार दिया जाता है, और इसके प्रभावों को लेकर चिंता व्यक्त की जाती है।
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