उत्तराखंड- देश के साथ ही उत्तराखंड राज्य में वन नेशन वन इलेक्शन पर नई बहस छिड़ गई है। पहाड़ प्रदेश में इस कानून की व्यवहारिकता पर सवाल उठ रहे हैं। उत्तराखंड में एक ओर जहां आपदा और बर्फबारी के साथ ही पहाड़ विषम भौगोलिक परिस्थितियां इसकी व्यवहारिकता पर प्रश्न चिंह लगा रहे हैं। आपको बता दें कि मोदी सरकार ने लोकसभा के बाद अब राज्यसभा में भी वन नेशन वन इलेक्शन बिल के लिए जेपीसी गठित कर दी गई है। जेपीसी में लोकसभा के 27 तो वहीं राज्यसभा के 12 सदस्य होंगे। इससे पहले एक देश एक चुनाव को लोकसभा में पेश किया गया था। विपक्ष ने इस बिल के खिलाफ भारी हंगामा किया था। वहीं केंद्र सरकार ने वोटिंग के बाद आए नतीजों के बाद इस बिल को जेपीसी में भेज दिया। राज्यसभा में जेपीसी के गठन के बाद सदन को अनिश्चितकालीन के लिए स्थगित कर दिया है। वहीं उत्तराखंड के राज्यसभा सांसद और प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने इस बिल को जेपीसी में भेजने का स्वागत किया है। साथ ही कहा कि ‘वन नेशन- वन इलेक्शन व्यवस्था देशहित में जरूरी’ है। वहीं माना जा रहा है कि धामी सरकार भी पंचायत और निकाय के चुनाव एक साथ कराने पर विचार कर रही है। सवाल ये है कि क्या पहाड़ प्रदेश में वन नेशन वन इलेक्शन संभव है।
पहाड़ प्रदेश उत्तराखंड में क्या एक देश एक चुनाव संभव है ये सवाल इसलिए क्योंकि पहाड़ की भौगोलिक परिस्थितियां दूसरे राज्यों से अलग होने के साथ ही अन्य चुनौतियों के चलते सरकार के लिए एक साथ चुनाव कराना पहाड़ जैसी चुनौती से कम नहीं है। हालांकि मोदी सरकार की ओर से लोकसभा के बाद अब राज्यसभा में भी वन नेशन वन इलेक्शन बिल के लिए जेपीसी गठित करने के फैसले को उत्तराखंड में भी भाजपा इसका स्वागत कर रही है। भाजपा का तर्क है कि एक ओर जहां इस व्यवस्था से बार बार लगने वाली आचार संहिता से बचा जा सकता है तो वहीं धन खर्च की भी बचत होगी हालांकि विपक्ष भाजपा के दावों को हवा हवाई बताते हुए सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहा है।
आपको बता दें कि देश में 1952 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे हालांकि 1967 के बाद इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। वहीं एक ओर जहां देशभर में एक साथ चुनाव पर बहस छिड़ी है तो वहीं दूसरी ओर धामी सरकार के राज में एक के बाद एक कई चुनाव टाले गये है। इसके तहत निकाय, पंचायत, सहकारिता, छात्र संघ और सहकारिता के चुनाव टाले गये हैं जिसको लेकर विपक्ष भाजपा सरकार पर हमलावर हैं.
कुल मिलाकर देश के साथ ही उत्तराखंड में एक राष्ट्र एक चुनाव पर नई बहस शुरू हो गई हैं। हालांकि उत्तराखंड में इस कानून की व्यवहारिकता पर सवाल उठने लगे हैं। वहीं एक के बाद एक धामी सरकार की ओर से चुनाव टालने को लेकर भी विपक्ष ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए है देखना होगा कि क्या सरकार इस दिशा में आगे बढ़ेगी या नहीं?
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