KNEWS DESK – उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सड़क चौड़ीकरण के नाम पर घरों को अवैध रूप से ध्वस्त करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताते हुए योगी सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार से स्पष्टीकरण मांगा और उन लोगों को मुआवजा देने का आदेश दिया|
सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख
आपको बता दें कि यह मामला महाराजगंज जिले का है, जहां 2019 में सड़क चौड़ीकरण के नाम पर लोगों के घरों को तोड़ा गया था। इस मामले में मनोज टिबरेवाल आकाश द्वारा दाखिल की गई एक शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मामले की सुनवाई करते हुए यूपी सरकार के तर्कों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, “आप कहते हैं कि लोग अतिक्रमण कर रहे थे, लेकिन कोई प्रमाण पत्र नहीं दिया जा रहा है। क्या इस तरह घरों को तोड़ना उचित है? यह पूरी तरह से मनमानी है।” कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि इस तरह की कार्रवाई की जाती है, तो उचित प्रक्रिया का पालन होना चाहिए था।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हलफनामे में यह कहा गया था कि कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था और लोगों को बिना कोई सूचना दिए ही उनकी संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया गया। कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा कि अगर कोई अतिक्रमण था, तो क्या मुआवजा देने का कोई प्रावधान था? कोर्ट ने इस पर कहा कि दंडात्मक मुआवजा देने पर विचार किया जा सकता है।
मुआवजा देने का आदेश
कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों के घरों को तोड़ा गया, उन्हें 25 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। इस फैसले से यह भी स्पष्ट हुआ कि यूपी सरकार को पहले से तय मुआवजा नीति को लागू करने के लिए कदम उठाने होंगे, ताकि लोगों को उचित हर्जाना मिल सके।
यूपी सरकार पर कोर्ट की कड़ी टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के वकील से पूछा, “आप यह कैसे दावा कर सकते हैं कि यह अतिक्रमण था? आपने पिछले 50 साल में क्या किया है? यह अहंकार की स्थिति है, जहां राज्य सरकार किसी भी संवैधानिक प्रक्रिया को नजरअंदाज कर रही है।”
जस्टिस जेबी पारदीवाला ने यूपी सरकार के वकील से सवाल किया कि “क्या यह प्रक्रिया सड़क चौड़ीकरण से कहीं ज्यादा कुछ है? क्या यह जमीन का अवैध अधिग्रहण नहीं है?” उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने पहले ही उन स्थानों पर पीले निशान लगाए थे, फिर अगले दिन बुलडोजर से घरों को गिरा दिया।
अवैध कार्रवाई पर जांच की आवश्यकता
सीजेआई ने कहा कि इस मामले में गंभीर जांच की जरूरत है क्योंकि विभागीय दस्तावेज और भौतिक प्रमाण यह साबित करने में विफल रहे हैं कि सड़क चौड़ीकरण के लिए आवश्यक कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि अतिक्रमण के नाम पर जिन घरों को तोड़ा गया, उनमें से कई घर सड़क चौड़ीकरण की वास्तविक सीमा से परे थे। इसके अलावा, एनएचआरसी द्वारा जारी रिपोर्ट में पाया गया कि जिन घरों को तोड़ा गया, उनकी दूरी अतिक्रमण क्षेत्र से कहीं अधिक थी। कोर्ट ने इस पर भी गहरी चिंता व्यक्त की और कहा कि इस पूरे मामले में किसी भी प्रकार की मानवीय संवेदनशीलता का अभाव था।
सीजेआई का निष्कर्ष
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “सड़क चौड़ीकरण को लेकर यह कार्रवाई पूरी तरह से अधिकारों का उल्लंघन करती है। क्या सरकार को यह लगता है कि इस प्रकार की कार्रवाई से न्याय मिलेगा?” उन्होंने यह भी कहा कि यूपी सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राय और घरों के विध्वंस के दौरान संवैधानिक प्रक्रिया का पालन किया जाए, और अगर ऐसा नहीं हुआ तो इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
मामला गंभीरता से लेकर हल करने के दिए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को यह मामला गंभीरता से लेकर हल करने के निर्देश दिए हैं। न्यायालय ने कहा है कि स्थानीय नागरिकों को इस पूरे प्रकरण में न्याय मिलना चाहिए और सरकार को इस मामले में अपनी खामियों को सुधारने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।