KNEWS DESK- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2022 की बिहार यात्रा के दौरान गड़बड़ी की योजना बनाने के आरोप में प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के कथित कैडर को किराए पर एक घर देने के आरोप में गिरफ्तार किए गए जलालुद्दीन खान को सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (13 अगस्त 2024) को जमानत दे दी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी भी की, जिसमें जमानत के नियम और जेल की स्थिति को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं।
जमानत की अदालत की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एएस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने जमानत देते हुए कहा, “जमानत नियम है और जेल अपवाद है” का सिद्धांत कठोर जमानत शर्तों वाले कानूनों पर भी लागू होगा। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जब जमानत देने का मामला बनता है, तो अदालतों को जमानत देने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। जस्टिस ओका और मसीह ने कहा, “अभियोजन पक्ष के आरोप भले ही बहुत गंभीर हो सकते हैं, लेकिन अदालतों का कर्तव्य कानून के अनुसार जमानत देने के मामले पर विचार करना है।”
जस्टिस ओका और मसीह की पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद है’ का सिद्धांत सभी प्रकार के मामलों में लागू होता है, चाहे कानून में जमानत देने के लिए कठोर शर्तें क्यों न हों। पीठ ने बताया कि जमानत देने का मामला बनने पर न्यायालय जमानत देने से इनकार नहीं कर सकता। यदि न्यायालय ऐसे मामलों में जमानत देने से इनकार करना शुरू कर देता है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन होगा।
जलालुद्दीन खान, एक सेवानिवृत्त पुलिस कॉन्स्टेबल, को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया गया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने पटना के फुलवारी शरीफ में स्थित अहमद पैलेस की पहली मंजिल, जो उनकी पत्नी के नाम पर थी, कथित PFI कैडर को किराए पर दी थी। एनआईए ने इस मामले में यह भी दावा किया था कि खान को सीसीटीवी फुटेज में 6 और 7 जुलाई 2022 को पहली मंजिल से सामान हटाते हुए देखा गया था। पुलिस ने 11 जुलाई 2022 को विशेष खुफिया जानकारी के आधार पर छापेमारी की थी, लेकिन कोई सामान नहीं मिला, जिससे संकेत मिलता था कि खान ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की थी।
अदालत का फैसला और तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए की कई दलीलों को खारिज कर दिया। जस्टिस ओका ने कहा कि आरोप पत्र में खान की ओर से पहली मंजिल के परिसर से हटाए गए सामानों की प्रकृति का कोई उल्लेख नहीं है। अदालत ने यह भी माना कि अगर खान का इरादा PFI की आपत्तिजनक गतिविधियों को संचालित करने की अनुमति देने का होता, तो वे सीसीटीवी कैमरे नहीं लगवाते। इसके अलावा, अदालत ने यह भी ध्यान में रखा कि आरोप पत्र में यह साबित करने वाला कोई सबूत नहीं था कि खान आतंकवादी कृत्यों में लिप्त था या आतंकवादी कृत्यों की तैयारी कर रहा था।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय जमानत देने के सिद्धांत और विधिक प्रावधानों को लेकर महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान करता है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जमानत देने का मामला बन जाने पर जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता और जमानत का नियम जेल की स्थिति से ऊपर है। यह निर्णय न्यायपालिका के स्वतंत्रता और संविधान के अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
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